दीपावली को घर में दीये जलाने और पूजा पाठ करने के बाद हुक्कापाती खेलने का रिवाज है। बगैर हुक्कापाती निकाले लोग घर से बाहर नहीं निकलते हैं। इसलिए दीपावली में अन्य साम्रगी की खरीददारी के साथ साथ लोग हुक्कापाती को जरूर खरीदते हैं। हालांकि जहां पटूआ की खेती होती है। वहां के लोग खुद ही इसे बना लेते है। लेकिन अधिकांश जगहों पर पटुआ नहीं होने से लोगों को संटी की बनी हुक्कापाती खरीदनी पड़ती है।दिवाली को लेकर पटुआ के लकड़ी की मांग काफी बढ़ जाती है।
लकड़ी से हुक्कापाती बनाकर बेचने के लिए कई लोग जदिया मीरगंज आदि जगहों से खरीदकर ट्रक भरभरकर कर मंगा चुके हैं। इस संटी(पटुआ की लकड़ी) को छोटे छोटे टु’कड़े कर पांच छह संटी को एक साथ बांध कर बेचते हैं। इस हुक्कापाती को लोगों को पांच से दस रूपये तक में बेचा जाता है। जूट की डंडियों से बनी दीपावली के मौके पर घर-घर में जलाये जाने वाली हुक्का-पाती जलाने का रिवाज कोसी और आसपास के अंचलों अधिक पाया जाता है। हुक्का-पाती को जलाकर लोग दिवाली मनाने की रात में अंतिम परंपरा पूरी करते हैं।
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