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JDU में वापसी के बाद नीतीश से करीबी, क्या पार्टी में नंबर दो की पोजीशन पर हैं उपेंद्र कुशवाहा ?

पटना. बिहार की राजनीति में जेडीयू खेमे से इन दिनों एक नाम काफी ट्रेंड या यूं कहें सुर्खियों में है. वो नाम है पूर्व केंद्रीय मंत्री और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के घर JDU में वापसी करने वाले उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha). हाल के दिनों में कुशवाहा जिस तरह से नीतीश कुमार पर हो रहे हमलों को लेकर ढाल बनकर उभरे हैं उससे बिहार के सियासी गलियारों में एक साथ कई सवाल खड़े होने लगे हैं, जिनमें सबसे अहम सवाल उनका यानी उपेंद्र कुशवाहा का जेडीयू में नंबर दो की पोजीशन पर काबिज होना है.

रालोसपा का जेडीयू में कर दिया था विलयलव-कुश समीकरण मजबूत करने के लिए नीतीश कुमार ने उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी RLSP को ना सिर्फ JDU में शामिल करवा दिया था बल्कि उपेन्द्र कुशवाहा को JDU संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष का पद भी थमा दिया था, तभी से ये राजनीतिक हलको में समझने की कोशिश की जा रही थी कि नीतीश कुमार के लिए अब उपेन्द्र कुशवाहा की भूमिका क्या रहने वाली है. इसी बीच बिहार में कोरोना के दौर में कई ऐसे वाक़ये हुए जिसने ये साफ-साफ संदेश दे दिया कि आज की तारीख में उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़े ढाल के रूप में उभरे हैं.

क्या कहते हैं उपेंद्र कुशवाहा

इस सवाल पर कि क्या उपेन्द्र कुशवाहा JDU में नीतीश कुमार के बाद नम्बर दो के नेता हो गए हैं उपेन्द्र कुशवाहा कहते हैं कि मेरी कोई इच्छा नहीं है JDU में नम्बर दो का नेता होने की. मैं नम्बर के रेस में रहता भी नहीं मै तो पार्टी का छोटा सा कार्यकर्ता हूँ और मेरी एक ही इच्छा है की JDU मज़बूत हो और जो उसका पुराना दौर था वो फिर से वापस लौटे और बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरे. कुशवाहा ने कहा कि मुझे हैरानी तब होती है जब समय-समय पर अपने ही सहयोगी नीतीश जी पर सवाल खड़े करने लगते हैं. वो कहते हैं कि अरे भाई बिहार में NDA की सरकार है सिर्फ JDU की नहीं है. अगर कोई बात है तो पार्टी फोरम के अंदर वो बातों को उठाएं सार्वजनिक तौर से उठाने की क्या जरूरत है. और मैं वही बोलता हूं तो लोग उसका कुछ और मतलब निकालते हैं.

तो क्या साइड कर दिए गए हैं आरसीपी सिंह

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और बिहार की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले अरुण पांडे बताते है की इसकी पृष्ठभूमि तभी से तैयार हो गई थी जब उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी JDU में मर्ज़ होने वाली थी. JDU कार्यालय में बड़े पैमाने पर तैयारी की गई थी. नीतीश कुमार खुद एक घंटा पहले JDU कार्यालय पहुंच गए थे और जब उपेन्द्र कुशवाहा के JDU दफ्तर में आने की खबर मिली तो वे खुद बाहर जाकर कुशवाहा को लाने निकले लेकिन उन्हें पार्टी के ही कुछ बड़े नेताओ ने रोका. तब नीतीश कुमार ने पार्टी के प्रमुख नेता ललन सिंह, अशोक चौधरी और संजय झा को गेट पर उपेन्द्र कुशवाहा को स्वागत करने के लिए भेजा था. उसी समय ये साफ हो गया था कि नीतीश कुमार के लिए कुशवाहा कितने खास हो गए हैं.

कुशवाहा की वापसी से नाखुश 

अरुण पांडे ये भी बताते हैं कि तब पूरी पार्टी उपेन्द्र कुशवाहा के स्वागत में मौजूद थी. सिर्फ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को छोड़कर जो उस वक़्त दिल्ली में मौजूद थे. उनके बारे में खबर थी कि वो इस फैसले से खुश नहीं है. राजनीतिक घटना के तौर पर देखेंगे तो ये पहली बार हो रहा था जब कोई पार्टी दूसरे पार्टी में मर्ज़ कर रहा हो तो राष्ट्रीय अध्यक्ष ही मौजूद ना हों लेकिन बावजूद इसके कुशवाहा के JDU में शामिल होने के बाद जिस गर्मजोशी से नीतीश और कुशवाहा एक दूसरे से गले मिलकर लिपटे और नीतीश कुमार के चेहरे पर जो ख़ुशी झलक रही थी उससे साफ़ था की नीतीश के लिए कुशवाहा क्या मायने रखते हैं.

चुनाव में मिली हार बनी मजबूरी या जरूरत

दरअसल नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से ही JDU को मज़बूत करने में जुट गए हैं और उसी कड़ी में उन्होंने बिहार की जातिगत राजनीति की हकीकत को समझते हुए अपने पुराने समीकरण लव कुश को फिट करने की तैयारी की और उसमें सफल भी हुए. उनके इस प्रयोग में उपेन्द्र कुशवाहा पूरी तरह से फिट बैठते हैं और यही वजह है कि उपेन्द्र कुशवाहा JDU में नीतीश कुमार के बाद फिलहाल नम्बर दो की पोजिशन पर हैं.

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