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बेहद र’हस्यमयी बताया गया है भगवान शिव की तीसरी आंख को, क्षण भर में खत्म हो सकता है ब्रम्हांड ‘ॐ नमः शिवाय’

देवों के देव महादेव कहे जाने वाले भगवान शिव जितनी जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्तों का उद्धार करते हैं वहीं उनका क्रो’ध भी सभी देवों से प्र’चंड है। जहां सभी देवों को प्रसन्न करने के लिए बड़े-बड़े अनुष्ठान किए जाते हैं वहीं भगवान शिव शिवलिंग पर जल चढ़ाने मात्र से प्रसन्न होकर अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। आइए जानते हैं भगवान शिव की तीसरी आंख के रहस्य के बारे में विस्तार से…
पुराणों में भगवान शंकर के माथे पर एक तीसरी आंख के होने का उल्लेख है। उस आंख से वे वह सबकुछ देख सकते हैं जो आम आंखों से नहीं देखा जा सकता। जब महादेव तीसरी आंख खोलते हैं तो उससे बहुत ही ज्यादा उर्जा निकलती है। एक बार खुलते ही सब कुछ साफ नजर आता है, फिर वे ब्रह्मांड में झांक रहे होते हैं।

ऐसी स्थिति में वे कॉस्मिक फ्रिक्वेंसी या ब्रह्मांडीय आवृत्ति से जुड़े होते हैं। तब वे कहीं भी देख सकते हैं और किसी से भी प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित कर सकते हैं।भगवान शिव की तीसरी आंख को प्रलय कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि एक दिन भगवान शिव की तीसरी आंख से निकलने वाली क्रोध अग्नि इस धरती के विनाश का कारण बनेगी। शिव जी के तीनों नेत्र अलग-अलग गुण रखते हैं जिसमें दांए नेत्र सत्वगुण और बांए नेत्र रजोगुण और तीसरे नेत्र में तमोगुण का वास है। भगवान शिव ही एक ऐसे देव हैं जिनकी तीसरी आंख उनके ललाट पर दिखाई देती है, जिसके कारण इन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। जिनमें एक आंख में चंद्रमा और दूसरी में सूर्य का वास है, और तीसरी आंख को विवेक माना गया है। शिवजी के मस्तक पर दोनों भौंहों के मध्य विराजमान उनका तीसरा नेत्र उनकी एक विशिष्ट पहचान बनाता है।
माना जाता है कि शिव का तीसरा चक्षु आज्ञाचक्र पर स्थित है। आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है। तृतीय नेत्र खुल जाने पर सामान्य बीज रूपी मनुष्य की सम्भावनाएं वट वृक्ष का आकार ले लेती हैं। आप इस आंख से ब्रह्मांड में अलग-अलग आयामों में देख और सफर कर सकते हैं। वेद शास्त्रों के अनुसार इस धरा पर रहने वाले सभी जीवों की तीन आंखें होती हैं। जहाँ दो आंखों द्वारा सभी जीव भौतिक वस्तुओं को देखने का काम लेते हैं वहीं तीसरी आंख को विवेक माना गया है। यह दोनों आंखों के ऊपर और मस्तक में मध्य होती है, किन्तु तीसरी आंख कभी दिखाई नही देती है।वेदों के अनुसार, यह नेत्र उस स्थान पर स्थित है, जहां मानव शरीर में च्आज्ञा चक्रज् नामक एक महत्वपूर्ण चक्र उपस्थित होता है।

आज्ञा चक्र का अर्थ है, हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा की शक्ति। इस चक्र को जागृत करने का अर्थ है, मानव शरीर में सम्पूर्ण आध्यात्मिक ऊर्जा का समुचित प्रवाह होना। इसी आज्ञा चक्र के स्थान पर आत्मा का प्रबोधन (ज्ञान) प्रस्तुत और केंद्रित होता है। जो व्यक्ति इस ऊर्जा को जागृत कर लेता है, उसे सभी प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं। इस ऊर्जा के जरिए व्यक्ति ब्रह्मांड में सभी कुछ देख सकता है। भगवान् शिव मानव का शुद्धतम स्वरूप हैं, वे ब्रह्मांड में सबकुछ देख सकते हैं। वे अतीत में देख सकते हैं, वर्तमान पर नियंत्रण रख सकते हैं और भविष्य भी देख सकते हैं। वे त्रिकालदर्शी हैं, तीसरे नेत्र के द्वारा आज्ञा चक्र सक्रिय होता है।

पुराणों के अनुसार भगवान के तीनो नेत्रों को त्रिकाल का प्रतीक माना गया है। जिसमें भूत, वर्तमान और भविष्य का वास होता है। स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताललोक भी इन्ही तीनों नेत्रों के प्रतीक हैं। भगवान शिव ही एक ऐसे देव हैं जिन्हें तीनों लोको का स्वामी कहा गया है। धर्म ग्रंथो में भगवान शिव की तीसरी आंख से जुड़ी एक कथा प्रचलित है जिसमे प्रणय के देवता कामदेव अपनी क्रीड़ाओं के द्वारा शिव जी की तपस्या भंग करने का प्रयास करते हैं। और जैसे ही शिव जी तपस्या भंग होती है शिव जी क्रो’धित हो अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से कामदेव को भ’स्म कर देते हैं। यह कथा मनुष्य जीवन के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी है। कामदेव का वास प्रत्येक मनुष्य के अंदर होता है, उसे अपने विवेक और बुद्धि द्वारा मन में उठने वाले क्रो’ध और अवांछित काम वासना को शांत करना चाहिए।

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