भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रदो’ष व्रत किया जाता है। रविवार 24 नवंबर को त्रयोदशी होने से रवि प्रदो’ष का संयोग बन रहा है। रविवार को प्रदोष व्रत और पूजा करने से उम्र बढ़ती है और बीमा’रियां भी दूर होती हैं। इसके साथ ही शिव-शक्ति पूजा करने सेदांपत्य सुख में भी वृद्धि होती है।
- प्रदोष व्रत की विधि
- प्रदोष व्रत करने के लिए त्रयोदशी के दिन सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
- नित्यकर्मों से निवृत्त होकर भागवान शिव की उपासना करनी चाहिए।
- इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है। पूरे दिन का उपवास करने के बाद सूर्य अस्त से पहले स्नान कर सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए।
- पूजा की तैयारी करने के बाद उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुख कर भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए।
- पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊॅं नम: शिवाय’ का जप करते हुए शिव जी का जल अभिषेक करना चाहिए।
- रवि प्रदोष का महत्व
प्रदोष व्रत की महत्वता सप्ताह के दिनों के अनुसार अलग-अलग होती है। रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत और पूजा से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। रविवार को शिव-शक्ति पूजा करने से दाम्पत्य सुख भी बढ़ता है। इस दिन प्रदोष व्रत और पूजा करने से परेशानियां दूर होने लगती हैं। रवि प्रदोष का संयोग कई तरह के दो’षों को दूर करता है। इस संयोग के प्रभाव से तरक्की मिलती है। इस व्रत को करने से परिवार हमेशा आरोग्य रहता है। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
- प्रदोष व्रत कथा
- स्कंद पुराण की कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ भिक्षा मांगने जाती एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसने नदी किनारे सुन्दर बालक दिखा?
- दरअसल वो बालक विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। उसके पिता को दुश्मनों ने मार दिया और राज्य को अपने अधीन कर धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया। बालक को देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका पालन-पो’षण किया।
- कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर मंदिर गई, जहाँ उसे शाण्डिल्य ऋषि मिले। ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के माता-पिता के मौत के बारे में बताया। इससे ब्राह्मणी बहुत उदास हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे विधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताए गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है।
कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार पर गए तभी वहां कुछ सुंदर गंधर्व कन्याएं दिखी। राजकुमार धर्मगुप्त गंधर्व कन्याअंशुमती की ओर आकर्षित हुए और कन्या के पिता को जब पता चला कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया। राजकुमार धर्मगुप्त का जीवन बदलने लगा। उसने बहुत संघ’र्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना तैयार की। इसके बाद राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया।कुछ समय बाद उसे मालूम हुआ कि उसे जाे कुछ मिला वह प्रदो’ष व्रत का फल था। उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी। उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा उसे किसी परे’शानी या द’रिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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