उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इ’लाकों में औसत ता’पमान में बढ़ोत्तरी एवं गर्म हवाएं चलने से वैक्टर जनित और वायरल बी’मारियों में दो सौ फीसदी तक का इ’जाफा हुआ है। यह ख’तरा बढ़ता जा रहा है। इससे इन राज्यों में रहने वाले एक करोड़ से अधिक लोगों के स्वास्थ्य पर ख’तरा पैदा हो गया है। ईएनजे के शोध के अनुसार उत्तराखंड, हिप्र समेत तमाम हिमालयी राज्यों में अभी अब गर्म हवाएं या लू चलने की घ’टनाएं होने लगी हैं तथा यह साल दर साल बढ़ भी रही हैं। इन राज्यों में गर्मियों के दौ’रान अधिकतम ता’पमान में चार डिग्री तक की बढ़ोत्तरी रि’कॉर्ड की गई है। सर्दियों में भी आधा डिग्री ता’पमान अधिक हो चुका है।
सर्द दिनों की संख्या में 30-35 फीसदी की कमी हुई है। ग:र्म दिन बढ़े हैं। अकेले उत्तराखंड और हिप्र के करीब एक करोड़ लोगों के जीवन पर प्रतिकूल असर हुआ है और बी’मारियों का खतरा दोगुना हुआ है।रिपोर्ट के अनु:सार इससे दो बड़े ख’तरे सामने आए हैं एक वि’षाणुजनित रोग (वायरल डिजीज) और दूसरा रोगवाहक जनित (वैक्टर बार्न) बी’मारियों में भा’री बढ़ोत्तरी। इस शोध में जमीनी स्तर पर एकत्र किए गए आंकड़े बताते हैं कि महज पिछले आधे दशक में ही इन बीमारियों में दो सौ फीसदी तक की बढ़ोत्तरी देखी गई है।रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते तापमान का प्रभाव दो तरीके से पड़ा है। एक, कुछ नि’चले इला’कों में चलने वाली गर्म हवाओं के रूप में, दूसरे, समूचे क्षेत्र के औसत अधिकतम तापमान में बढ़ोत्तरी के रूप में। रिपोर्ट के अनुसार हाल के वर्षों में पर्वतीय इ’लाकों समेत उत्तर पश्चिमी भारत में औसत तापमान में 0.59 डिग्री तक की औस’त वृद्धि हुई है। जो अधिकतम और न्यूनतम तापमान में कभी-कभी चार डिग्री तक अधिक दर्ज की जाती रही है। गर्म दिन और गर्म रातों की संख्या में तकरीबन 30-40 फीसदी तक का इजा’फा हुआ है।पर्वतीय क्षेत्र में जो घा’टी वाले इ’लाके हैं, वहां मार्च के आखिरी महीने से लेकर मई के अंत तक लू यानि गर्म हवाएं चलने की घट’नाएं हो रही हैं। यह स्थि’ति तब पैदा होती है जब तापमान सामान्य से चार डि’ग्री और ज्यादा बढ़ जाए। इससे घा’टी में बसी आ’बादी ज्यादा प्रभावित है। मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ. के. जे. रमेश ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में गर्म हवाएं बढ़ना नई स’मस्या है।
पहले ऐसी घ’टनाएं दु’र्लभ होती थी, लेकिन अब गर्मियों के तीन महीनों मार्च-मई के दौ’रान यह आम हो गई हैं क्योंकि औसत तापमान भी बढ़ रहा है।समुद्रतल से करीब तीन हजार की फीट की ऊंचाई पर पहाड़ी क्षेत्र आरंभ होता है। करीब चार हजार फीट की ऊंचाई पर नैनीताल के निकट एक गांव है ज्योलीकोट। यह गांव घाटी में है। चारों तरफ पहाड़ी क्षेत्र है। गर्म हवाओं ने लोगों की दि’नचर्या बदल दी है। स्थानीय निवासी 75 वर्षीय गोबिन्द सिंह बोरा बताते हैं कि वे युवावस्था में मई-जून के महीने में कोट पहनकर कार्यालय जाया करते थे। लेकिन अब गर्मी इतनी ज्यादा है कि इन महीनों में बिना छाता के निकलें तो लू लगना तय है। दूसरा बदलाव वह यह देखते हैं कि इस पहाड़ी इला’के में मच्छरों की भरमार हो गई है। मच्छर जनित बी’मारियां भी बढ़ रही हैं। वे कहते हैं कि ज्यादा पीछे नहीं जाएं तो एक दशक पहले तक इस गांव में लोग पंखों का इस्तेमाल नहीं करते थे, लेकिन अब बिना पंखे के रह नहीं सकते।ज्योलीकोट के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉ. उमेश चंद्र जोशी करीब आठ सालों से म’रीजों को देख रहे हैं और उनकी चिं’ताएं बढ़ रही हैं क्योंकि साल दर साल विषा’णुजनित रो’गों के मरी’जों की संख्या बढ़ रही है। वे कहते हैं कि यह संख्या पहले के सालों की तुलना में दोगुनी हो चुकी है। महिलाएं, बच्चे एवं बुजुर्ग इन बी’मारियों की चपे’ट में सबसे ज्यादा आ रहे हैं। इसके दो कारण हैं, एक, इनकी आबादी इ’लाके में ज्यादा है क्योंकि रोजगार के लिए शहर चले जाते हैं। दूसरे, ये अपनी रोजमर्रा की सक्रियता के कारण ज्यादा संवेदनशील भी हैं। जब मौसम बदलता है जैसे फरवरी मार्च, जून-जुलाई और अक्टूबर नवंबर में वाय’रल बी’मारियां महामा’री का रुप धारण कर लेती हैं। एक ही दिन में सैकड़ों बु’खार के रो’गी आ जाते हैं। दरअसल, विभिन्न किस्म के विषाणुओं के अनुकूल मौसम जब होता है तो वे सक्रिय हो जाते हैं। पहले ज्यादा सर्द तापमान के कारण वे टिक नहीं पाते थे। लेकिन अब उपरोक्त महीनों के दौ’रान तापमान न ज्यादा सर्द होता है और न गर्म, जिससे वे पनपते हैं। किस-किस किस्म के वायरस सक्रिय हैं इसकी जांच के पर्याप्त इंतजाम भी नहीं हैं। अलबत्ता, इन वायरस पर एंटीबायोटिक दवाएं अभी असर कर रही हैं। डॉक्टर जोशी कहते हैं कि यह ता’पमान में बढ़ोत्तरी का नतीजा है क्योंकि यह देखा गया है कि जागरूकता बढ़ने से दूसरी बी’मारियां घ’ट रही हैं।हिमालयन एनवायरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन (हैस्को) देहरादून के प्रमुख डॉ. अनिल प्रकाश जोशी के अनुसार यह ख’तरा उत्तराखंड के हर हिस्से में बढ़ा है।
यदि बढ़ती गर्मी के इन खतरों से निप’टने के लिए स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत नहीं किया, तो खतरा और बढ़ेगा। पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) में स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी) के निदेशक डॉ. संजय कुमार बताते हैं कि गर्म हवाओं ने पर्वतीय क्षेत्र के पारिस्थिकीय तंत्र को ही प्रभावित किया है। कुछ साल इस प्रयोगशाला में पूर्व गुलाब की एक ऐसी किस्म देखी गई जिसमें कांटे गायब हो चुके थे। दूसरे, बढ़ती गर्मी के कारण पालमपुर देश का दूसरा सर्वाधिक बारिश वाला स्थान बन रहा है। जबकि यह दर्जा कुछ समय पूर्व तक यहां से करीब 60 किमी दूर स्थित धर्मशाला को प्राप्त था। इस क्षेत्र में मच्छर जनित तथा जीवा’णु जनित बी’मारियों में लगातार ब’ढ़ोत्तरी हो रही है।राज्य में डें’गू, मलेरिया तथा अन्य विषा’णु रो’गों में इजाफा हुआ है। हिमाचल प्रदेश के कई ऊंचाई वाले इ’लाकों में तापमान में वृद्धि के कारण पांच हजार फुट की ऊंचाई पर भी आ’म उगने लगे हैं तथा यहां का परंपरागत फल सेब का उत्पादन घट’ने लगा है। खबर है कि सेब का आकार घ’ट रहा है। गर्मी के कारण सेब समय से पहले ही पक जा रहे हैं जिससे वह पूर्ण आकार नहीं ले पाता है। अब कृषि वैज्ञानिक सेब की ऐसी किस्म विकसित करना चाहते हैं जो गर्मी में भी उगाई जा सकें।
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