वहीं उनकी पत्नी का जन्म सात मार्च 1919 को हुआ था। मूल रूप से नोखा प्रखंड के तिलई गांव निवासी हरि नारायण सिंह अब सपरिवार शहर में ही रहते हैं। अपने परिवार में चार पुत्र, एक पुत्री व 16 पोते-पोतियों से भरे-पूरे परिवार में हरि नारायण सिंह ने इस अवस्था में जीवटता को कायम रखते हुए रोजाना कोर्ट में अधिवक्ता-न्यायाधीशों के साथ बहस करते हैं। उनकी सक्रियता व इस उम्र में कोर्ट में आजे देख नौजवान अधिवक्ताओं के साथ मुवक्किल व न्यायाधीश कई बार दांतों तले अंगुली द’बाते नजर आते हैं।हरि नारायण सिंह ने कलकता विश्वविद्यालय से स्नातक, स्नातकोत्तर व वकालत की पढ़ाई पूरी की थी। एमए कॉमर्स से करने के बावजूद वकालत के पेशे को चुना। वकालत के पेशे में आने के पूर्व कलकता में शिक्षक के रूप में भी कुछ दिनों तक कार्य किया था। उसके बाद 1952 में वे पहली बार तब के शाहाबाद के अनुमंडलीय कोर्ट सासाराम में वकालत शुरू की।
उनके सीनियरों में राम नरेश सिंह, कालका प्रसाद श्रीवास्तव, लक्ष्मणदेव सिंह, राधिका रमण शर्मा, रामाशंकर सिंह आदि विद्वान अधिवक्ता थे। कलकता से जब वे प्रैक्टिस के लिए शहर में आए तो उन दिनों कोट-टाई व बैज के साथ न्यायालय में जाना चर्चा का विषय बनता था। उसी समय से लोग उन्हें कलकतिया वकील के नाम से बुलाने लगे थे। जो अब तक उनकी पहचान के रूप में कायम है। पांच रूपए में उन्होंने अपने जीवन का पहला मुकदमा लड़ा था। लेकिन अब उनकी रोजाना की प्रैक्टिस पांच हजार से कम नहीं होती है। हाजिर जवाब ऐसे कि प्रतिद्वंदी वकील से ले न्यायाधीश भी उनका जवाब देने में सौ बार सोचते हैं।
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