देवेन्द्र
पश्चिम बंगाल से लेकर भाया बिहार दिल्ली तक की सियासत इन दिनों काफी गर्म है. मानसूनी हवाएं भी जब बदन को छूकर निकलती हैं तो बजाय ठंडक के लू के थपेड़ों जैसा एहसास करा रही हैं. दिल्ली यूपी को बार–बार ‘दिल्ली’ होने का एहसास करा रही है तो बिहार सत्ता की करवट बदलने को कसमसा रहा है.

बंगाल की तो कुछ पूछिए ही मत. यह तो हस्तिनापुर पर भी हावी होने का एहसास करा रहा है. सियासत तो महाराष्ट्र की भी गरम हो चली है, खासकर तबसे जब से मोदी–उद्धव और पवार–पीके की मुलाकातों का सिलसिला चला है. लेकिन बिहार की सियासत कुछ ज्यादा ही झटके खा रही है, खासकर जबसे लालूजी जेल से बाहर आए हैं. दो दलों के नेताओं को रात में बुरे–बुरे सपने आ रहे हैं. कभी–कभी अचानक गहरी नींद से सत्तारूढ़ दल के नेता चिहुंकर उठ बैठते हैं. फिर ठंडा पानी पीकर सो जाते हैं.
बात बिहार से ही शुरू करते हैं जहां ऐसा लग रहा है कि ‘मांझी’ का मन एक बार फिर डोल रहा है. हाल के दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं. हालांकि सबकुछ कहने और करने के बाद जीतनराम मांझी आखिर में कह देते हैं कि वो एनडीए में हैं और एनडीए में ही रहेंगे. उनकी आखिरी लाइन सुनकर सत्ता में बैठे लोग चैन की सांस तो लेते हैं लेकिन जेल से बाहर लालू की मौजूदगी उन्हें पूरी तरह आश्वस्त नहीं होने देती. जीतनराम मांझी पुराने कांग्रेसी रहे हैं, मुंह जलाने से बचना चाहते हैं. किसी भी मुद्दे को इतना लंबा खींचते हैं कि सामने वाला भी उकता जाता है. उसे भी लगता है कि रोज–रोज की किचकिच अच्छा है, मुक्ति पा लें. कम से कम कन्फ्यूजन तो नहीं रहेगा.
पिछले कुछ दिनों से जीतनराम मांझी उसी एजेंडे पर आगे बढ़ रहे हैं. मांझी की ख्वाहिश थी कि नीतीश कुमार उनको एक एमएलसी का सीट देते, कैबिनेट में एक मंत्री पद देते, मगर ऐसा हो नहीं पाया. इसके बाद मांझी पॉलिटिकल प्लान बनाने में जुट गए. बीच में कोरोना ने कुछ दिनों तक रास्ते को रोके रखा. अब मांझी पहले से ज्यादा फिट हैं, कोरोना भी थोड़ा ठंडा पड़ गया है और राजानीतिक माहौल भी मुफीद है. ऐसे में अगर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और तेजप्रताप यादव के बीच करीब 40 मिनट तक बंद कमरे में बातचीत हो और खुद लालू भी फोन पर 10 मिनट लंबी बात करें तो चौकन्ना रहना ही पड़ेगा.
अब जरा प. बंगाल चलिए. यहां उमस भरी गर्मी तो है लेकिन टीएमसी को यह गर्मी भी सुकून दे रही है क्योंकि उसने आज भाजपा को जोर का झटका धीरे से दिया है. दरअसल तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा का दांव उसी पर आजमाया है. उसने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तृणमूल का झंडा छोड़कर भगवा लहर में बहे सुवेंदु अधिकारी के मामले में बदला ले लिया है. टीएमसी ने भाजपा के अंदाज में काम करते हुए भाजपा का दामन थामने वाले मुकुल रॉय की घर वापसी करा ली है. कहा जा रहा है कि मुकुल रॉय लंबे समय से भाजपा में उपेक्षित महसूस कर रहे थे. इस साल हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कृष्णानगर दक्षिण से जीतने के बाद मुकुल रॉय के टीएमसी में वापसी की अटकलें लग रही थीं. इसके पीछे वजह यह भी बताई गई कि बंगाल में विपक्ष के नेता के रूप में उनका नाम न आगे बढ़ाकर सुवेंदु अधिकारी को इसकी कमान सौंप दी गई. तब से वे नाराज ही चल रहे थे.
इधर, यूपी का हाल भी अच्छा नहीं है. ‘दिल्ली’ लखनऊ पर हावी होना चाह रही है क्योंकि दिल्ली का रास्ता यूपी होकर ही जाता है. लेकिन लखनऊ दिल्ली को झटके पर झटके दे रहा है. जबसे यह खबर अखबारों में साया हुई है कि यूपी विधानसभा चुनाव में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे का इस्तेमाल नहीं होगा तब से अटकलबाजियों का दौर शुरू हो गया है. लोग पूछ रहे हैं कि क्या पीएम मोदी की लोकप्रियता का तिलिस्म टूट रहा है या यूपी में योगी को तनहा करने की कोशिश हो रही है. क्योंकि यूपी के विधानसभा चुनाव को 2024 में दिल्ली का सेमीफाइनल बताया जा रहा है. इस कारण बीते कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश की सरकार को लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा संगठन, उत्तर प्रदेश सरकार और भाजपा के जन प्रतिनिधियों के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं. योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दूरियां होने की अटकलें लगाई जा रही हैं. योगी आदित्यनाथ के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के सोशल मीडिया पर बधाई नहीं देने के मुद्दे भी तूल पकड़ चुके हैं. अमित शाह और योगी आदित्यनाथ की मुलाक़ात के बाद भी दोनों नेताओं के ट्वीट ने लोगों का ध्यान खींचा.
योगी आदित्यनाथ ने तस्वीर के साथ दो लाइन का ट्वीट किया. उन्होंने मुलाक़ात का समय देने के लिए अमित शाह का आभार भी जताया.योगी आदित्यनाथ ने लिखा, आज आदरणीय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी से नई दिल्ली में शिष्टाचार भेंट कर उनका मार्गदर्शन प्राप्त किया. भेंट हेतु अपना बहुमूल्य समय प्रदान करने के लिए आदरणीय गृह मंत्री जी का हार्दिक आभार…वहीं, अमित शाह ने एक लाइन के ट्वीट में सिर्फ मुलाक़ात की जानकारी दी. अमित शाह दो दिन के अंदर योगी समेत कुल तीन नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. इत्तेफ़ाक से तीनों नेता उत्तर प्रदेश से हैं. उधर मुख्यमंत्री योगी का लगातार मुलाकातों का सिलसिला चलाए हुए हैं. गृहमंत्री शाह से मिलने के बाद पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा, फिर 80 मिनट तक प्रधान मंत्री से गुप्तगू. अब कहा जा रहा है कि वे राष्ट्रपति से भी मिलने वाले हैं…मुलाकातों का लंबा दौर तपिश बढ़ाने के लिए तो काफी है. वैसे महाराष्ट्र भी पीछे नहीं है जहां की अलग–अलग मुलाकातें पानी–पानी मुंबई में भी तपिश घोल रही है.
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