दउरा या डलिया झारखंड से आती है। छोटे बैर इलाहाबाद, मिर्जापुर आदि जगहों से आता है।इस पर्व में बर्तनों का काफी महत्व है। इसमें पीतल, लोहा और स्टील के कई तरह के बर्तनों का उपयोग होता है। कई लोग पीतल के सूप, पीतल की थाली, गिलास, सहित अन्य बर्तन भी रखते हैं। ये बर्तन उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद, वाराणसी, मिर्जापुर आदि जगहों पर बनाए जाते हैं। वहीं व्रती सूती साड़ियां पसंद करती हैं जो पश्चिम बंगाल और गुजरात से मंगाई जाती हैं। महिलाएं बनारसी साड़ियां भी पहनती हैं। व्रती राजस्थानी लहठी या चूड़ियां भी पहनती हैं, जो राजस्थान के होते हैं।सुथनी बेचने वाले नारायण महतो ने बताया कि सिर्फ छठ में ही इसका बाजार सजता है। मुजफ्फरपुर की सुथनी को देश के विभिन्न कोने में जहां छठ होता है, वहां भेजी जाती है। वहीं मिर्जापुर के बेर भी विभिन्न जगहों पर भेजे जाते हैं। बर्तन विक्रेता पंकज ने बताया कि धरतेरस के पहले से ही छठ की खरीदारी शुरू हो जाती है। इसके लिए हमलोग दो महीने पहले से ऑर्डर देते हैं। कपड़ा व्यवसायी मिथिलेश ने बताया कि छठ व्रतियों के लिए खासतौर से साड़ियों की मांग होती हैं।
इसके लिए गुजरात और बंगाल से उसी अनुसार पहले से ऑर्डर के अनुसार मंगाए जाते हैं।खरमनचक की छठ व्रती अर्चना ठाकुर ने बताया कि वह छठ करती हैं और पति की तबादले वाली नौकरी के कारण देश के विभिन्न कोने में रही हैं, लेकिन देश के विभिन्न कोनों से मिलने वाले ये सामान मुश्किल से ही सही मिल जाता है। तातारपुर के लाल कोठी के रवि शर्मा ने कहा कि वह सेना में रहे हैं। कई राज्यों में रहे हैं, लेकिन कई प्रदेशों में छठ होता है और वहां छठ करने वाले तो मिलते ही हैं। विभिन्न प्रदेशों के सामान भी मिल जाते हैं। देश के विभिन्न प्रदेशों को जोड़ने वाला यह पर्व सबसे अलग है।
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