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#DELHI अ’ग्निकां’ड; द’र्द भरा फ़ोन कॉल- ‘भइया घर का ध्यान रखियो, ख’त्म होने वाला हूं मैं’

भइया आ’ग लगी है, मैं ख’तम होने वाला हूं आज, भागने का कोई रास्ता नहीं है। त”ड़के 4:41 बजे मोनू ने फोन पर जब ये शब्द सुने तो रू’ह कां’प गई। यह फोन उसके दोस्त मु’शर्रफ का था, जो फैक्टरी में आ’ग की ल’पटों के बीच फं’सा था। 7 मिनट 19 सेकेंड की इस फोन कॉल के दौ’रान मौ’त की द’हलीज पर बैठा युवक चिं’ता करता रहा कि उसका परिवार कैसे चलेगा।

फोन की घंटी बजती है…
मोनू : हां और बता..
मुशर्रफ : हैलो..मोनू। भइया ख’तम होने वाला हूं आज, भइया आ जइए करोलबाग। मोनू से नंबर ले लियो। वो जो मोनू हेगा-गुलजार।
मोनू : वहां से निकल ले
मुशर्रफ : नहीं है कोई रास्ता, ख’तम हूं आज मैं। भाई घर का ध्यान रखियो। सांस भी नहीं लिया जा रहा।

मोनू : दमकल को फोन किया?
मुशर्रफ : ना भाई अब कुछ नहीं हो रहा, सांस भी ना आ रही। घर का ध्यान रखियो..कल आ के ले जइयो..(रोते हुए) मेरे बच्चे और घर का ध्यान रखियो भाई।
मोनू : भाई, तुम सारे वहीं हो
मुशर्रफ : हां भाई, बस किसी को एक दम से बतइयो ना, आराम से भइया। खाली बड़ों बड़ों में जिकर करके कल को लेने आ जइयो
बीच में कुछ देर मुशर्रफ बात बंद कर देता है। दूसरी तरफ से लोगों के त’ड़पने की आवाज आती है।
ल’ड़ख’ड़ाती आवाज में मु’शर्रफ फिर बोलता है। भाई..घर का। अब बस हां’फने की आवाज आती है।
मोनू : कोशिश कर बचने ‘की
मुशर्रफ : भइया क्या होगा घर का
मोनू : तू किस माले पर है?
मुशर्रफ : तीसरा-चौथा
मोनू :अरे तेरे की
मुशर्रफ : मोनू ले आवेगा, ठीक है भइया। किसी से जिक्र न करियो, कहियो मेरे कफन को संभाल के रखें
दिल्‍ली वालों की रविवार की सुबह रानी झांसी रोड के अनाज मंडी इ’लाके में ल’गी आ’ग के साथ हुई। जैसे-जैसे दिन च’ढ़ने लगा लोगों की ची’ख पु’कार के साथ म’रने वालों का आं’कड़ा भी बढ़ने लगा। अंधेरा होने तक इस हा’दसे में 43 लोगों की मौ’त हो चुकी थी। हाद’से पर राजनीति भी शुरू हो गई थी। अब सवाल उठ रहे हैं कि रिहा’यशी इ’लाके में कैसे यह फै”क्‍ट्री चल रही थी। इन्‍हें ला”इसेंस कि”सने दिया। फैक्‍ट्री में फा’यर सेफ्टी के उपाय क्‍यों नहीं थे, वगै’रह-वगै’रह। लेकिन, जहां से ये स’वाल उठ रहे हैं उन्‍हें यह भी याद रखना होगा कि इस इला’के में केवल यही एक फैक्‍ट्र्री नहीं चल रही है, बल्कि इस जैसी सैकड़ों फैक्ट्रियां यहां पर चल रही हैं।

यह फैक्ट्रियां भाजपा और कांग्रेस की सरकार में भी यहां चल रही थीं। यहां की बारीकियों को समझने और जानने वाले इससे ब’खूबी परिचित भी होंगे। इतने स’घन आबादी वाले इला’कों में बिजली के तारों का जा’ल वर्षों से ऐसा ही बिछा है। लेकिन इसका अर्थ ये कतई नहीं है कि इनको ‘सही नहीं किया जा सकता था। यहां पर और यहां की तरह दूसरे सघन इला’के में रहने वाले लोग यह ब’खूबी जानते हैं कि फा’यर ब्रि’ग्रेड के वहां पहुंचने में कितनी ज’द्दोजहद करनी होती है। अक्‍सर इन इला”कों में हा”दसे के समय फा’यर ब्रिग्रेड पहुंच ही नहीं पाती है। वजह यहां की तंग ग’लियां और उसमें भी लोगों द्वारा अवै’ध क’ब्‍जा करना सबसे बड़ी स”मस्‍या होती है। इस बार भी यही वजह थी। इस हा’दसे में जितने लोग मा’रे गए उसमें सबसे अधिक 28 लोग बिहार से हैं। ये लोग रोजी-रोटी के जु’गाड़ में यहां पर आए थे।हा’दसे के दौ’रान ही आ’ग में फं’से लोगों ने अपनों को फोन भी करना शुरू कर दिया था।

जिस फैक्‍ट्री में यह हा’दसा घ’टा उससे एक दिन पहले ही यहां पर एक और इ’मारत में आ’ग लगी थी। यहां का रास्‍ता बे’हद तं’ग था। जिस बिल्डिंग में यह हा’दसा हुआ वह पांच मं’जिला इमारत थी। यहां पर बच्‍चों के बै’ग बनाने का काम होता था। काम करने वाले ज्‍यादातर लोग इसी इ”मारत में ही रहते भी थे। जिस वक्‍त सुबह ये हा’दसा हुआ उस व”क्‍त ज्‍यादातर म’जदूर सोए हुए थे। अ’चानक आग ने वि’कराल रूप ले लिया। पड़ोस के एक 11 वर्षीय बच्‍चे ने जब कमरे में आ’ग लगी देखी तो उसने दूसरे लोगों को शो’र म’चाकर उठाया।

आ’नन-फा’नन में लोगों ने इमा’रत में फं’से लोगों की जान ब”चाने की कवा’यद भी शुरू की। इस क”वायद में कुछ को ब’चा लिया गया तो कुछ की जा’न नहीं ब’चाई जा सकी। फा’यर ब्रि’गेड कर्मियों ने भी अपनी जा’न पर खेलकर कई लोगों को बचाया। इनमें से एक राजेश शुक्‍ला भी थे। उन्‍होंने 11 लोगों की जान ब’चाई। इस दौ’रान वो खुद भी ज”ख्‍मी हुए। दिल्‍ली के मंत्री समेत अन्‍य लोगों ने भी उनकी ज'”मकर तारीफ की।

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