जम्मू-कश्मीर की डल झील की याद दिलाई ये तस्वीरें बेगूसराय की हैं। यहां से 20 किलोमीटर की दूरी पर है ये बिहार की अकेली रामसर साइट कांवर झील। जो इन दिनों पर्यटकों से गुलजार है।हालांकि सीमित संसाधन होने के कारण यहां का पर्यटन व्यापक रूप धारण नहीं कर सका है, लेकिन इसकी खूबसूरती दूर-दूर से पर्यटकों को खींच लाती है।n
कमल के फूलों के बीच झील में नावें चलती हैं।
यह भारत की 39वीं रामसर साइट है। विभाग की अनदेखी के चलते ज्यादातर लोग इसे नहीं जानते। साल 1989 ई में बिहार सरकार ने 6311 हेक्टेयर क्षेत्रफल को बर्ड सेंचुरी बनाने की घोषणा की थी। तब से लेकर झील को सुंदर बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि जियोग्राफरों के रिसर्च में कावर झील की अस्तित्व पर संकट की आशंका जताई गई है।
कांवर झील को संवारा जाए तो ये राज्य के अच्छे पर्यटन क्षेत्र के रूप में हो सकता है।
ठंड के मौसम में विदेशी और देसी पक्षी आते हैं यहां घूमने
कांवर झील पक्षी विहार में 59 तरह के विदेशी पक्षी और 107 तरह के देसी पक्षी ठंडे के मौसम में आते हैं। कांवर परिक्षेत्र में ही पुरातत्वीय महत्व का बौद्धकालीन हरसाइन स्तूप और सिद्धपीठ माता जयमंगला का मंदिर भी है। कहा जाता है कि यहां भगवान बुद्ध भी आए थे।
इस झील में नाव से घूमने पर जम्मू की डल झील का महसूस होता है।
इस झील में 250 से ज्यादा नावें चलती हैं
जयमंगला गढ़ मंदिर परिसर के नजदीक कांवर झील घाट पर स्थानीय सदा समुदाय के लोग ढाई सौ की संख्या में अपना-अपना नाव बनाकर उस पर कपड़े की गद्दी लगाकर पर्यटकों के इंतजार में बैठे रहते हैं। पर्यटक के पहुंचते ही अपनी नाव पर बिठाकर उन्हें कावर झील के आसपास के क्षेत्रों में उन्हें घुमाते हैं। एक नाव पर अधिकतम पांच या छह लोग बैठते हैं जिसका लगभग ₹200 नाविक किराया लेते हैं।
इस झील में उगे कमल के फूल इसकी सुंदरता पर चार चांद लगा देते हैं।
कांवर झील का विकास हो तो बेगूसराय में बरसेंगे रोजगार के अवसर
कांवर झील पक्षी विहार पर कई लेख लिखने वाले कांवर नेचर क्लब के संस्थापक महेश भारती कहते हैं कि कांवर झील पक्षी विहार का समुचित विकास बिहार सरकार के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग और पर्यटन विभाग को मिलकर करना चाहिए। कावर झील पक्षी विहार के व्यापक स्वरूप को पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित किया जाए तो यह बिहार और भारत ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फेमस होगा। इसके साथ ही बेगूसराय में स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के बंपर अवसर पैदा होंगे। यहां साइबेरियन बर्ड्स हर साल आते हैं।
यहां के नाविक इसी झील से अपना घर चलाते हैं।
सिकुड़ता जा रहा है झील का जल क्षेत्र
कांवर झील को लेकर किसानों और मछुआरों के बीच खींचतान काफी समय से चल रही है । बीते दशकों में साल दर साल जल प्लावित भूभाग सिकुड़ गया है। एक आंकड़ा के मुताबिक मानसून के मौसम में कावर झील पक्षी बिहार के नोटिफाइड एरिया के कुल भूमि का 4,500 हेक्टेयर पर जल जमाव हो रहा है। झील के वेटलैंड के सूची में रामसर साइट घोषित करने के बाद भी 36% की कमी आ गई है।
उद्धारकर्ता जलोढ़ पारिस्थितिक प्रतिष्ठान सोसायटी के अनुसार, हर साल लगभग 3.8 सेमी गाद कांवर झील में जमा होती है, जिससे झील की गहराई कम हो जाती है। प्रदूषण और अपशिष्ट सहित अन्य प्रमुख समस्या से झील को भी खतरा हो रहा है। ऐसी ही स्थिति बनी रही तो भविष्य में यह झील सूख जाएगी।
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