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वीटीआर में भीम के साथ अंगद भी करते वास, जानें इस अनोखी दुनिया के बारे में

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में आप भीम के साथ अंगद को भी देख सकते हैं। दारा भी देखने को मिल सकता है। ये नाम किसी व्यक्ति के नहीं बाघों के हैं। वीटीआर प्रशासन इन्हें इसी नाम से जानता है। दरअसल, यहां बाघों की पहचान नाम और नंबर से होती है। बाघों का नामकरण दो आधार पर किया जाता है। पहला वीटीआर के अंदर के स्थान विशेष तथा दूसरा किसी व्यक्ति के विशेष की पहचान पर। इसमें स्थान विशेष पर अब तक किसी बाघ का नाम नहीं रखा गया है। संकेत नंबर के हिसाब से बाघों के लिए टी वन, टी टू और टी थ्री आदि नाम रखे जाते हैं। अब तक वीटीआर में बाघों के लिए 33 संकेत दिए जा चुके हैं। प्रति चार वर्ष पर बढ़ी बाघों की संख्या के लिए अलग-अलग संकेत दिए जाते हैं। जिस बाघ या बाघिन की मौत हो जाती है, उस संकेत नंबर को हटा दिया जाता है। 

टाइगर ट्रैकरों को दिया गया मान

वीटीआर के क्षेत्र निदेशक हेमकांत राय के अनुसार बाघों की सुरक्षा में तैनात टाइगर ट्रैकर के नाम से भी इसका नामकरण किया गया है। टाइगर ट्रैकरों को मान देने एवं उनकी कार्यशैली की प्रशंसा में अब तक चार नाम दिए गए हैं। इसमें दारा, भीम, अंगद और मंगू नाम शामिल हैं। बाघों के शरीर, उसकी चाल-ढाल एवं व्यवहार को ध्यान में रखते हुए ये नामकरण किए गए हैं।

तकनीक से बाघों की गणना में सुविधा

तकनीक से बाघों की गणना में आसानी हुई है। सही आंकड़े मिल रहे हैं। इसमें चूक की गुंजाइश कम है। वीटीआर में वर्ष 2006 से बाघों की गणना हो रही है। पहले पग मार्क से गणना होती थी। अब कैमरा ट्रैप का सहारा लिया जा रहा है। इस विधि से गणना में वास्तविक स्थिति की जानकारी मिल रही है।

ट्रैप कैमरे में जितनी भी तस्वीरें आती हैं, उन्हेंं प्रत्येक सप्ताह निकालकर देखा जाता है। वीटीआर प्रशासन ने प्रत्येक बाघ के लिए संकेत नंबर निर्धारित किए हैं। यदि बिना नंबर का कोई शावक कैमरे में आता है तो यह साबित होता है कि नया बाघ दिख रहा है। गणना में बाघ के धारियों के पैटर्न की सहायता ली जाती है। हर बाघ की धारियां अलग-अलग होती हैं। धारियों के पैटर्न की पहचान करने के लिए कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं। मुख्यतया वाइल्ड-आइडी नामक सॉफ्टवेयर उपयोग होता है। प्रत्येक ट्रैप कैमरा के लिए आइडी नंबर देते हुए इसकी जीपीएस लोकेशन निर्धारित की जाती है।

कैमरे से गणना में जहां परेशानी आती है, वहां डीएनए फिंगर प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग होता है। इसमें बाघों को उनके मल से पहचाना जा सकता है। वीटीआर में इस तकनीक का इस्तेमाल वर्ष 2015-16 में किया गया था। इसके तहत बाघों के मल-मूत्र को भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून भेजा गया था, ताकि वहां की फोरेंसिक लैब में जांच की जा सके। वीटीआर में प्रत्येक बाघ के मल के अलग-अलग संग्रहण में परेशानी के कारण इस तकनीक का यहां इस्तेमाल नहीं होता है। 

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