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#RAIPUR; इस गांव के पीने वाले पानी में मिला है ख’तरनाक ज’हर, अंदर ही अंदर बेहद बीमा’र हो रहे यहां के लोग, जानें…

अगला विश्‍व युद्ध पानी के लिए हो सकता है, ये बात कई बार सुनने को मिल चुकी है। पीने के शुद्ध पानी की स’मस्या आज एक विश्व व्यापी चु’नौती है। इस दौ’र में छत्तीसगढ़ का एक गांव ऐसा है, जहां का भूमिगत पानी ज’हरीला है। लोग इस पानी को मजबूरी में पीते हैं और अपनी जान गंवाते हैं। एक अ’भिशाप की तरह लोग इस जह’रीले पानी के शि”कार हो रहे हैं। लोगों की मजबूरी है कि इन्हें पीने के लिए यही पानी उपलब्ध है। लोगों को पता है कि यह पानी अंदर-अंदर उनकी कि”डनी गला रहा है और जिस्म को खोखला बना रहा है, बावजूद इसके लोगों के पास अपनी प्यास बुझाने का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। धीरे-धीरे यहां की आबादी सि’मट रही है।

लोग या तो गांव छोड़कर पलायन कर रहे हैं या फिर मौ’त के मुंह में समा रहे हैं। इस गांव में रह रहे युवक-युवतियों की शादियां भी नहीं हो रहीं, जिसकी वजह से यहां की जनसंख्या बढ़ने की बजाय कम हो रही हैं।गरियाबंद के सुपेबेड़ा गांव के लोग एक ऐसी बीमा’री का शि’कार हो रहे हैं, जिसकी वजह से यहां की आबादी घ’टती जा रही है। सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी को लेकर इस कदर द’हशत है कि लोग पलायन कर रहे हैं। गरियाबंद जिले के इस 900 की आबादी वाले गांव में सन 2005 से लगातार किडनी की बीमारी से मौत का सिलसिला जारी है। अब तक यहां 68 मौ’तें हो चुकी हैं। साल 2005 में ही सुपेबेड़ा में मौ’तों का सिलसिला शुरू हो गया था, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।

साल 2017 में यहां 32 लोगों की मौ’त हुई। यह खबरें जब अखबारों की हेडलाइन बनीं, तब सरकार जागी। तत्कालीन मंत्रियों ने दौड़ लगाई। कैंप लगाए गए, डॉक्टरों को भेजा गया। कई गं’भीर म’रीजों को इ’लाज के लिए रायपुर लाया गया। गांव में अस्पताल खोला गया और अब राज्यपाल ने गांव का दौ’रा कर वहां प्र’भावित म’रीजों के एम्स और रायपुर के अन्य सुपर स्पेसिलिटी अस्पताल में मुफ्त उप’चार का आश्वासन दिया है।राजधानी रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सुपेबेड़ा की मिट्टी का परीक्षण किया था। मुम्बई के टाटा इंस्टीटयूट और दिल्ली के डॉक्टर भी अपने स्तर पर जांच कर चुके हैं। जबलपुर आइसीएमआर की टीम भी यहां जांच के लिए पहुंची। पीएचई विभाग ने पानी की जो जांच की थी, उसमें उन्हें फ्लोराइड और आरसेनिक की मात्रा ज्यादा मिली थी।

उसके समाधान के लिए गांव में फलोराइड रिमुवल प्लांट लगा दिया गया था, मगर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा की गई मिट्टी की जांच में हैवी मैटल पाए गए थे, जिसमें कैडमियम और क्रोमियम भी ज्यादा मात्रा में शामिल है।वर्तमान में कांग्रेस की सरकार ने सुपेबेड़ा में शुद्घ पेयजल पहुंचाने के लिए योजना बनाई है। करीब दो करोड़ रुपये की इस योजना से पास में बहती तेल नदी से पानी पहुंचाया जाएगा। तेल नदी पर पुल निर्माण और वाटर फिल्टर प्लांट के लिए 24 करोड़ रुपये भी स्वीकृत किए गए हैं। यहां के लोगों को शुद्ध पेयजल पहुंचाने के लिए पूर्व में जो वाटर फिल्टर और आर्सेनिक रिमुवेबल प्लांट स्थापित किए गए हैं, इनकी कार्यक्षमता पर सवाल उठते रहे हैं। प्लांट में पानी ठीक तरीके से शुद्ध नहीं हो पाने के कारण स्थिति में विशेष सुधार नहीं हुआ।

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