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International Women’s Day 2021: बिहार की राजनीति में संघर्ष के बूते सड़क से सदन तक पहुंचीं दो महिलाएं

पटना. इस पुरुष प्रधान समाज (Male dominated society) में महिला सशक्तीकरण (Women empowerment) को लेकर ढेर सारे किताबी जुमले आपने सुने होंगे. आपने यह भी महसूस किया होगा कि लिखने-पढ़ने में यह सशक्तीकरण की बात कितनी प्यारी लगती है. लेकिन हकीकत इसके उलट रही है. इस समाज में आगे बढ़ रही स्त्री के पांव खींचने में लोग जुट जाते हैं. लांछनों और आरोपों से यह समाज (society) किसी भी महिला की ताकत तोड़ने की कोशिश में जुट जाता है. राजनीति (Politics) का क्षेत्र हो या धर्म (religion) का, पढ़ाई का क्षेत्र हो या लेखन का – हर जगह महिला को हाशिये पर रखने की कोशिश की जाती है. लेकिन आज हम आपको मिलवाएंगे बिहार की ऐसी दो स्त्रियों से, जिन्होंने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद अपनी कोशिशें जारी रखीं और आज की तारीख में उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में अपनी मुकम्मल पहचान बनाई हैं. उनकी यह पहचान समाज के हर दबे-कुचले लोगों के लिए प्रेरणा है. कहने की जरूरत नहीं कि ये दोनों महिलाएं स्त्री सशक्तीकरण की जीती जागती मिसाल हैं.

रेणु देवी (डिप्टी सीएम, बिहार)

बिहार की डिप्टी सीएम रेणु देवी के संघर्ष से रूबरू हों.

बिहार की मौजूदा डिप्टी सीएम रेणु देवी 5-5 बार भारतीय जनता पार्टी से विधायक चुनी गई हैं. आज पार्टी में उनकी स्थिति इतनी दमदार है कि अधिकतर बड़े नेता उन्हें दीदी कहकर बुलाते हैं. एक कार्यकर्ता से डिप्टी सीएम बनने तक के सफर को रेणु देवी बेहद चुनौतीपूर्ण मानती हैं. उनके संघर्ष का अंदाज आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बेहद कम उम्र में ही इनके पति का देहांत हो गया था. पर रेणु देवी ने हिम्मत से काम लिया. उन्होंने न सिर्फ अपने बच्चों का पालन-पोषण किया, बल्कि पूरे परिवार की जिम्मेदारी भी संभालीं. और फिर जब एक बार जनसंघ और बीजेपी के साथ चल पड़ीं, तो फिर वे कहीं नहीं रुकीं. बिहार के पश्चिमी चंपारण के बेतिया से रेणु देवी 5 बार निर्वाचित हुईं और आज नीतीश सरकार के मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री के पद पर काबिज हैं. यह कोई आसान सफर नहीं है. न्यूज18 से एक्सक्लूसिव बातचीत में रेणु देवी ने अपने जीवन संघर्ष की पूरी कहानी साझा कीं. उन्होंने बताया कि वे पिछड़े समाज से आती हैं. छोटी-सी उम्र में सुहाग उजड़ गया. लेकिन वह जानती थीं कि संघर्ष का कोई विकल्प नहीं होता. नतीजा था कि उन्होंने भी संघर्ष किया. बच्चों का पालन-पोषण करती रहीं, साथ में जारी रखीं अपनी पढ़ाई-लिखाई भी. इसी के बूते वे आज डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं. पुराने दिनों को याद करके रेणु देवी थोड़ा भावुक जरूर हो जाती हैं, लेकिन खुद को कमजोर नहीं होने देतीं. महिला दिवस के मौके पर उन्होंने उन तमाम महिलाओं से अपील की जो खुद को अबला और असहाय मान संघर्ष का रास्ता स्वीकार करने से हिचक जाती हैं. उन्होंने कहा कि हम स्त्रियों को हर हाल में मजबूत बने रहना है. उन्होंने कहा कि वे खुद नोनिया जाति के अतिपिछड़े समाज से आती हैं और वह समाज की महिलाओं को कमजोर-लाचार नहीं, बल्कि सशक्त देखना चाहती हैं. रेणु देवी अपनी मां को अपना आदर्श मानती हैं.

संगीता कुमारी (विधायक, आरजेडी)

बिहार के मोहनिया से पहली बार चुनी गईं आरजेडी की विधायक संगीता कुमारी.

संगीता कुमारी मोहनिया से आरजेडी की विधायक हैं. अब वे अपने रविदास समाज और इस समाज की महिलाओं के लिए आदर्श बनने लगी हैं. संगीता कुमारी दलित की बेटी हैं, जिन्होंने खूब संघर्ष किया और जनता ने पहली बार उन्हें विधायक चुनकर बिहार विधानसभा में पहुंचाया. सदन में दिए अपने पहले भाषण में ही संगीता कुमारी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया. अपने पति को आदर्श मानने वाली संगीता देवी बेहद बेबाक और निडर महिला हैं. वे बताती हैं कि जिस समाज से वे ताल्लुक रखती हैं, वहां नौकरी तो दूर, पढ़ना-लिखना भी मुश्किल है. उस समाज में रहकर न सिर्फ उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई की, बल्कि समाज के विकास के लिए राजनीति में भी कदम रखा. 9 साल की तपस्या के बाद लालू यादव की पार्टी ने उन्हें मोहनिया से लालटेन का उम्मीदवार घोषित किया. उन्हें गर्व है अपने रविदास समाज और मोहनिया की जनता पर जिन्होंने पहली बार चुनकर उन्हें सदन में भेजा है. संगीता कुमारी की गिनती आरजेडी में सबसे युवा और तेज तर्रार विधायकों में होती है.

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