धनतेरस और दिवाली का बाजार सजने लगा है। पूजा में रखे जाने वाले लक्ष्मी- गणेश के चांदी के सिक्कों की बात करें तो खास यह कि इस बार 10, 20 और 50 ग्राम के अलावा पांच ग्राम वजन के सिक्के भी उपलब्ध होंगे। हालांकि 10 ग्राम के सिक्के की मांग अधिक रहती है, लेकिन चांदी के बढ़े दामों के कारण इस बार वजन घटाया गया है।चांदी के सिक्कों की ढलाई और आपूर्ति के बड़े केंद्र आगरा में कारोबारियों ने बताया कि इस बार लक्ष्मी-गणेश की छाप वाला पांच ग्राम का चांदी का सिक्का भी बनाया गया है, जिसकी कीमत 250 रुपये तक है। चांदी के बढ़े दामों को देखते हुए ऐसा किया गया है। लक्ष्मी-गणेश के अलावा राम दरबार, क्वीन विक्टोरिया और जार्ज पंचम की छवि वाले सिक्कों की भी ढलाई यहां होती है। हालांकि, कुछ वर्षों से लक्ष्मी-गणेश के सिक्कों की बढ़ती मांग के बीच अन्य छाप वाले सिक्के बाजार से लगभग हट गए।
दरअसल, आगरा में चांदी की पायलें बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं। कुटीर उद्योग के रूप में यहां करीब 200 गांवों के पांच लाख लोग इस कारोबार से जुड़े हैं। त्योहारी सीजन में चांदी के सिक्के भी बड़े पैमाने पर तैयार किए जाते हैं। आगरा-मथुरा से प्रतिदिन पांच से सात टन चांदी का कारोबार होता है।देश के बड़े सराफा कारोबारियों में शुमार स्थानीय कारोबारी आनंद अग्रवाल बताते हैं, पिछले दो महीनों में चांदी के दामों में पांच से सात हजार तक का उछाल आया है। ढाई फीसद ड्यूटी बढ़ी है। इसका असर यह हुआ कि पिछले साल जहां हमारे पास अकेले कॉरपोरेट सेक्टर से करीब 10 करोड़ के ऑर्डर आए थे, वहीं इस बार एक भी नहीं आया। यही हाल अहमदाबाद और मुंबई में भी है, जो सिक्का ढलाई के अन्य बड़े केंद्र हैं।
पहले अनेक कंपनियां अपने कर्मचारियों अथवा अन्य लोगों को गिफ्ट में देने के लिए थोक ऑर्डर देती थीं। चांदी के दाम बढ़ने के कारण इस बार इनके ऑर्डर नहीं आए। चांदी के भावों में हुई वृद्धि से सिक्के कहीं लोगों के बजट से बाहर न हो जाएं, ऐसे में इस बार लक्ष्मी-गणेश के सिक्कों का वजन घटा दिया है। वैसे 10 ग्राम, 20 ग्राम, 50 ग्राम का सिक्का भी मौजूद हैं।पिछले दो दशक में आगरा चांदी के कारोबार का बड़ा गढ़ बनकर उभरा है। इसके पीछे यहां रह रहे कारीगरों का हाथ है। आज यह कुटीर उद्योग है। बोदला, मोतीनगर, धाकरान, बलदेव आदि में घर-घर चांदी के आभूषण बनाने का काम होता है। कोई भी आभूषण बनाने के लिए सबसे पहले बंधेल (तार) बनता है। यह काम यहां मुगल काल से चल रहा है। सराफा कारोबारियों व इतिहासविदों के मुताबिक लक्ष्मी के अंकनयुक्त सिक्कों का प्रचलन सैकड़ों वर्ष पुराना है।
अब तक मिले सबसे पुराने सिक्के तीसरी सदी ईसा पूर्व के हैं।आगरा सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष नितेश अग्रवाल व श्री सराफा के अध्यक्ष मुरारी लाल फतेहपुरिया बताते हैं कि लक्ष्मी-गणेश के सिक्कों के अलावा आजकल ‘चांदी का डॉलर’ भी लोकप्रिय हो रहा है, जिसे लोग उपहार में देने के लिए खरीदते हैं। आगरा में बन रहे चांदी के सिक्कों में 91.60 प्रतिशत चांदी होती है, इसलिए इनकी डिमांड रहती है। कारोबारियों ने बताया कि लक्ष्मी-गणेश की चांदी की मूर्तियां भी बनाई गई हैं, जिनकी कीमत एक लाख रुपये तक है।
Leave a Reply