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दुः’खद; महान गणितज्ञ के श’व को नहीं मिली एम्बुलेंस, भ्र’ष्ट कर्मचारी बोले- ‘पहले 5000 रुपए रखो’

देश के महान गणित वशिष्ठ नारायण सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। गुरुवार को लंबी बीमा’री के बाद उनका PMCH में नि”धन हो गया। श्री सिंह देश के उन गिने-चुने गणितज्ञों में शुमार रहे हैं, जिन्होंने मैथ्स को एक नई परिभाषा दी। श्री सिंह करीब 40 साल से मानसिक बीमा’री सिज़ोफ्रेनिया से पी’ड़ित थे। वे लंबे समय से पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनाम जिंदगी गुजार रहे थे। हालांकि म”रने से पहले तक भी वे कॉपी-पेंसिल अपने साथ रखे रहे और कुछ न कुछ गणित लगाते रहे। श्री सिंह का लंबे समय से हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। हाल में उन्हें छुट़्टी दी गई थी। लेकिन दुबारा त’बीयत बि’गड़ने पर गुरुवार को फिर से भ’र्ती कराया गया था। हालांकि जब उन्हें हॉस्पिटल लाया गया, तब तक उनकी मौ’त हो चुकी थी। डॉक्टरों ने जांच के बाद ब्रेन डे’ड बताया था। 74 साल के वशिष्ठ नारायण सिंह मूलरूप से भोजपुर जिले के बसंतपुर के रहने वाले थे। पटना में वे अपने छोटे भाई के घर पर रह रहे थे। परिजनों ने बताया कि श्री सिंह के परिजनों ने बताया कि PMCH ने एम्बुलेंस देने से मना कर दिया।

उनका पार्थिव शरीर काफी देर तक ब्लड बैंक के पास रखना पड़ा। एम्बुलेंस वाले 5000 रुपए मांग रहे थे। उधर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वशिष्ठ नारायण सिंह के नि’धन पर शो’क जताते हुए उन्हें महान विभूति बताया। उन्होंने कहा कि श्री सिंह ने बिहार का नाम रोशन किया। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी श्री सिंह के नि’धन पर दु’ख जताया है।श्री सिंह बचपन से ही तेजस्वी थे। उन्होंने मैथ्स से जुड़े कई फॉर्मूलों पर रिसर्च किया था। श्री सिंह ने आइंस्टीन जैसे ख्यात वैज्ञानिक तक को चुनौती दी थी। एक बार तो उन्होंने पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान अपने टीचर को भी बीच में टोक दिया था। टीचर ने कोई फॉर्मूला ग’लत बताया था। इस घ’टना के बाद कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें बुलाकर अलग से एग्जाम लिया था। यहां उन्होंने सारे अकादमिक रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।

इसी बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे कैली उनकी प्रतिभा के का’यल हो गए। वे उन्हें अपने साथ अमेरिका ले गए। इसके बाद श्री सिंह ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। फिर वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। श्री सिंह ने नासा में भी काम किया। जब वे इंडिया लौटे, तो आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई और आईएसआई कोलकाता में अपनी सेवाएं दीं। कहते हैं कि जब श्री सिंह अमेरिका से लौटे, तो अपने साथ 10 बक्से किताबें लाए थे।

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