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#AYODHYA; सुप्रीम कोर्ट : ‘मस्जिद के लिए जगह नहीं दी तो मुस्लिमों के साथ न्याय नहीं होगा’

उच्चतम न्यायाल ने आयोध्या मामले में अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम को भूमि का आवंटन जरूरी है। हालांकि संभाव्यताओं के संतुलन और पूरे स्थल पर कब्जे के बारे में हिन्दुओं के सबूत मुस्लिमों द्वारा दिए गए सबूतों से बेहतर आधार पर खड़े हैं।पीठ ने फैसले में कहा कि पहले 1934 में मस्जिद को नुकसान पहुंचाना तथा उसके बाद 22 तथा 23 दिसंबर 1949 में मूर्ति रखकर उसे अपवित्र कर मुसलमानों को मस्जिद से बेदखल कर दिया गया था। आखिरकार इसे 6 दिसंबर 1992 में ध्वस्त ही कर दिया गया। मुस्लिमों द्वारा मस्जिद को छोड़ने के सबूत नहीं है।

अदालत संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए हम यह सुनिश्चत करते हैं कि जो गलत हुआ है उसे दुर’स्त किया जाए। यह न्याय नहीं कहा जाएगा यदि हम मुस्लिमों के अधिकार के बारे में नहीं सोचेंगे। जिससे उन्हें उन साधनों से वंचित किया गया था जिसे ऐसे धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं होना चाहिए था जो कानून से शासन से संचालित होता है। संविधान कहता है कि सभी धर्मों और पंथों की सबके साथ बराबरी हो।

सहिष्णुता तथा आपसी सहअस्तित्व हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूत करेगा। इसलिए हम आदेश देते हैं कि मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन अयोध्या में प्रमुख स्थान पर दी जाए।

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