नई दिल्ली. हर्जाना (Damages) और जुर्माना (Penalty) जैसे शब्दों से तो आपका भी पाला पड़ा होगा. ज्यादातर लोग दोनों को लेकर कंफ्यूज रहते हैं कि आखिर इनका इस्तेमाल कब और किसलिए होता है. दोनों में कोई अंतर भी है या नहीं. कब हर्जाना शब्द का इस्तेमाल किया जाता है और कब जुर्माने के इस्तेमाल किया जाता है. भारतीय कानून के तहत किस मामले में किस तरह के टर्म का इस्तेमाल किया जाता है.
दरअसल, हर्जाना (Damages) और जुर्माना (Penalty) जैसे शब्द भारतीय कॉन्ट्रैक्ट एक्ट 1872 के तहत शामिल किए गए हैं. हर्जाना शब्द को कॉन्ट्रैक्ट एक्ट की धारा 73 के तहत शामिल किया गया है तो जुर्माना शब्द को सेक्शन 74 में शामिल किया गया है. इस एक्ट में साफ बताया गया है कि कब हर्जाना शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा और कब जुर्माना वसूला जाता है.
क्या है हर्जाना
सरल शब्दों में कहें तो हर्जाना टर्म का इस्तेमाल किसी नियम के उल्लंघन, नुकसान करने या किसी को चोट पहुंचाने के मामले में मुआवजे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. हर्जाना शब्द का इस्तेमाल खासतौर से वाणिज्यिक (Commercial) लेनदेन में और इससे जुड़े व्यक्तियों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए दंडात्मक रूप से इस्तेमाल किया जाता है. हर्जाना आमतौर पर टॉर्ट यानी अनुबंध के मामलों में लागू किया जाता है.
हर्जाने का दावा शिकायतकर्ता और प्रतिवादी दोनों ही कर सकते हैं. दोनों ही पक्ष अपने-अपने नुकसान को लेकर हर्जाने का दावा कर सकते हैं. इसमें हर्जाने के रूप में मिलने वाले मुआवजे की राशि पहले से ही निर्धारित की जाती है. हर्जाना वसूलने के लिए किए गए नुकसान का सबूत देना जरूरी होता है.
कब लागू होता है जुर्माना
जुर्माना टर्म का इस्तेमाल भी किसी अनुबंध या शर्त तोड़ने या नुकसान किए जाने पर किया जाता है. जब मुआवजे की देय राशि अनुबंध के उल्लंघन से हुए संभावित नुकसान से अधिक होती है तो यह जुर्माना माना जाता है. इसके अलावा किसी अनुबंध में पहले से तय राशि से ज्यादा मुआवजे की मांग की जाती है तो यह भी एक तरह का जुर्माना कहा जाता है. दोनों में सबसे बड़ा अंतर यही है कि जुर्माना डिफॉल्ट करने वाले पर एक तरह से सजा के तौर पर लगाया जाता है, जबकि हर्जाना डिफॉल्ट से हुए नुकसान की भरपाई के लिए वसूला जाता है.


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