अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ…। इस अग्निपथ पर संघर्ष के करने वालों के आगे मुसीबतों को अपना सिर झुकाना पड़ता है। यह कहानी है उस मां की। जिसने अकेली होने के बाद भी अपने संघर्ष के दम पर तीन बच्चों का पालन-पोषण करते हुए उन्हें मुकाम तक पहुंचाया। बेटे ने भी मां के संघर्षों की कीमत चुकाई। विशाल ने पहले आईआईटी में सफलता पाई। फिर भारत के सबसे कठिन इम्तिहान यूपीएससी की परीक्षा में 484वीं रैंक हासिल कर आईपीएस बने। अभी विशाल आईएएस की तैयारी में लगे हैं। रीना देवी के संघर्ष की यह कहानी तब शुरू हुई, जब घर-परिवार और छोटे-छोटे तीन बच्चों की जिम्मेदारियों से बेपरवाह उनके पति दिनभर नशे में धुत होकर मारे-मारे फिरते थे। एक अकेली महिला तीन बच्चों के साथ रूखा-सूखा खाकर किसी तरह बस जी रही थी। लेकिन, किस्मत से यह भी देखा नहीं गया।
2008 में जब पति कांवर लेकर पहलेजा जा रहे थे तो रास्ते में गिर गए और उनकी मौत हो गई। खबर सुनते ही एक टूटी आस के सहारे जीने वाले परिवार का हौसला बिखर गया। मीनापुर के मकसूदपुर की रहने वाली रीना देवी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उम्मीदों के सहारे एक निजी बीमा कंपनी में एजेंट का काम करने लगी। महिला को एजेंट का काम करते देख लोग नाक-भौं सिकोड़ते। काफी परेशानी उठानी पड़ी। कुछ पॉलिसी आई लेकिन इससे घर का गुजारा चलना मुश्किल था। पति अपने पीछे मुट्ठी भर दौलत भी छोड़कर नहीं गए थे, उल्टे कर्ज चढ़ गया था। कई रात भूखे रह कर काटनी पड़ी। खुद पानी पीकर रहना पड़ा। अपना निवाला बच्चों को खिला देती। समय के साथ बच्चे बड़े होकर स्कूल जाने लगे। तो उनकी जरूरतें भी बढ़ने लगीं। फिर भी मां ने हौसला नहीं खोया। बच्चों को एक मुकाम देने के लिए संघर्ष जारी रखा।
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