जहरीली शराब से शरीर नीला पड़ गया था। रिएक्शन ऐसा था कि शरीर से बदबू आ रही थी। शव सड़ रहा था, लेकिन बिहार के सबसे बड़े अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए 24 घंटे का इंतजार कराया गया। परिवार वालों ने छपरा से लेकर पटना तक हेल्थ सिस्टम पर सवाल उठाए हैं। आरोप है कि पहले इलाज में लापरवाही की गई और मौत के बाद पोस्टमार्टम में मनमानी की गई। जहरीली शराब के शिकार लोगों के परिवार वालों ने दैनिक भास्कर के साथ दर्द साझा करते हुए सिस्टम की पोल खोली है।
छपरा से पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल आए भूटन प्रसाद ने बताया कि इलाज से ठीक से किया गया होता तो शायद लोगों की जान बच जाती। लखन प्रसाद (47 साल) और सृजन प्रसाद (49 साल) दोनों की मौत सदर अस्पताल में हुई है। घर वालों ने मौत के लिए जहरीली शराब के साथ हेल्थ सिस्टम को जिम्मेदार बताया है।
परिजन भूटन प्रसाद ने बताया कि सबसे पहले वह उन्हें छपरा के सदर अस्पताल ले गए, लेकिन इलाज ठीक से नहीं हुआ। सुबह तक दोनों की हालत ठीक थी, दोनों चल फिर रहे थे। इलाज छपरा में ही हो सकता था लेकिन डॉक्टरों दोनों को बवाल के डर से हटा दिया। दोनों को पटना मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया, रास्ते में ही दोनों की जान निकल गई।
पोस्टमार्टम हाउस के बाहर बैठे लोग।
पोस्टमार्टम के लिए कराया 24 घंटे का इंतजार
शव को पटना मेडिकल कॉलेज के मोर्चरी में रखा गया था लेकिन समय से पोस्टमार्टम नहीं कराया गया। छपरा से पटना लेकर आने के दौरान जहरीली शराब पीने वालों की मौत हो गई, लेकिन पोस्ट मार्टम के लिए 24 घंटे तक इंतजार कराया गया। परिवार वालों का आरोप है कि कोई जवाब देने वाला भी नहीं था कि पोस्टमार्टम में देरी क्यों की जा रही है। परिवारों वालों को अपनों को खोने के दर्द के बाद सिस्टम की मार भारी पड़ी है।
छपरा से पटना मेडिकल कॉलेज आए लोगों का आरोप है कि पहले शराब ने लोगों की हालत खराब कर दी इसके बाद इलाज में लापरवाही भारी पड़ी। जान नहीं बची तो शव को सड़ने के लिए 24 घंटे तक छोड़ दिया गया। राज्य के सबसे बड़े हॉस्पिटल पटना मेडिकल कॉलेज में शव को ले जाने के लिए शव वाहन तक नहीं था। एक छोटे से ठेला से एक साथ दो दो शवाें को ले जाया जा रहा था। ऐसे हेल्थ सिस्टम को देख लोगों में काफी आक्रोश भी दिखा।
मौत के बाद भी नहीं चेत रहे जिम्मेदार
छपरा में जहरीली शराब से करीब 11 लोगो की मौत हो चुकी है। छपरा के 15 लोगों के आंख की रोशनी भी चली गई है, 30 से अधिक लोग जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। गंभीर हालत होते ही पटना के लिए रेफर किया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर इलाज को लेकर दावे किए जाते हैं, लेकिन जहरीली शराब कांड में पीड़ितों का इलाज नहीं हो पा रहा है। दैनिक भास्कर की टीम जब पटना के पीएमसीएच अस्पताल पहुंची तब फोरेंसिक विभाग के पास मौजूद परिवार वालों की भीड़ ने सिस्टम का पूरा खेल खोलकर रख दिया। लोगों का आक्रोश अब पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों पर फूट रहा है।
टाटा वार्ड में एडमिड था मरीज।
लापरवाही एक
मिथिलेश महतो ने दैनिक भास्कर काे बताया कि 4 अगस्त को जहरीली शराब कांड में गंभीर हुए अपने ससुर को लेकर पीएमसीएच आ रहे थे, लेकिन रास्ते में दीघा के पास उनकी मौत हो गई। जब पीएमसीएच पहुंचे तो डॉक्टर ने देखने से इंकार कर दिया और इसी क्रम में करीब दो से ढाई घंटे निकल गए। मृत घोषित होने के बाद भी पोस्टमार्टम के लिए शव को वेटिंग में रखा गया। शव को पोस्टमार्टम हाउस नहीं भेजा गया। पोस्टमार्टम के लिए 24 घंटे बाद का समय दिया गया।
लापरवाही दो
सजनाथ कुमार ने दैनिक भास्कर को बताया कि जब वह अपने भाई मुकेश को पीएमसीएच ले कर आए थे तो वो ठीक था, लेकिन यहां उसका इलाज सही तरीके से नहीं हुआ किया गया। दवाएं सही तरीके से नहीं दी गई। हॉस्पिटल की व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हुए उनका कहना है कि टाटा वार्ड से फॉरेंसिक डिपार्टमेंट तक शव को ठेला पर ले जाना पड़ा। वह सुबह से शम तक पोस्टमार्टम के लिए बैठे रहे लेकिन समय नहीं दिया गया। पीएमसीएच में ऐसे मामले पहले भी सामने आ चुके हैं, जहां पोस्टमार्टम के लिए 24 से 36 घंटे तक इंतजार करना पड़ता है
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