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बिहार के लोग बाढ़ और चमकी बु’खार से ज़्यादा हर साल वज्रपात से म’र रहे है, जानें आंकड़े…

हम बिहार के लोगों को तो चमकी बु’खार (AES) ने ही मौ’त के आंकड़े गिनना सिखा दिया है. पिछले साल इसी जून महीने में हम लोग रोज अकाल कवलित होने वाले बच्चों की गिनती गिना करते थे और उदा’स हुआ करते थे. फिर बाढ़ आयी और फिर कोरोना आया. कोरोना (Coronavirus) ने हम सबकी गणित बुद्धि को दु’रुस्त कर दिया. रोज संक्रमण और मौ’त के आंकड़ों को गिनना और उनके ग्राफ बनाना, यह हमारे जीवन का हिस्सा बन गया. मगर इस गुरुवार को जो हुआ उसने हमारी गिनती भुलवा दी. शाम के वक्त राज्य सरकार (Bihar Government) के आपदा प्रबंधन विभाग की चिट्ठी जारी हुई कि एक ही दिन की भारी बारिश में बिहार के अलग-अलग जिलों के 83 लोग वज्रपात की वजह से मर गए हैं. रात होते-होते यह आंकड़ा 100 के पार चला गया.

उसी शाम हमने राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा भेजे गए कोरोना संक्रमण की गिनती को चेक किया. उस शाम तक राज्य में कोरोना संक्रमण (COVID-19) से मरने वाले लोगों की संख्या 56 थी. कुल संक्रमित 6480 थे और इनमें से 1844 लोग उस वक्त भी इलाजरत थे. हममें से ज्यादातर बिहार वालों ने सोचा कि जिस कोरोना से बचने के लिए हम तीन महीने से परेशान हैं, कदम-कदम पर एहतियात बरत रहे हैं, उसका आंकड़ा यह है…, और जिस तेज बारिश को इग्नोर कर हमारे किसान और खेतिहर मजदूर धान की बुआई की तैयारी करने के लिए खेतों की तरफ चले गए थे, उसने एक झटके में 100 से अधिक लोगों को अकाल कवलित कर दिया. हालांकि एक मौत भी मौत ही होती है, मगर अक्सर छोटे-बड़े बहानों से बेवजह मर जाने वाले हम बिहारियों को भी मौ’तों के इस आंकड़े ने दह’ला दिया. सोचने पर विवश कर दिया है.

यूपी और झारखंड में भी व’ज्रपात से मौ”तें हुई थीं

उस रोज यूपी और झारखंड में भी वज्रपात से मौ’तें हुई थीं. मगर उन मौ’तों की संख्या उतनी नहीं थी कि परेशान हुआ जाए. 130-135 मौ’तों में सौ से अधिक लोग सिर्फ बिहार के थे. हम सब सोच रहे थे कि हम इतने लाचार-बदहाल क्यों हैं, हमारी जान इतनी सस्ती क्यों है? अगर वज्रपात की ही बात की जाए तो पिछले दस सालों में राज्य के 2480 लोग इस वजह से असमय जान गंवा बैठे हैं. यानी हर साल 248 लोग. हर साल होने वाले चमकी बु’खार और बिहार के 28 जिलों में आने वाली बाढ़ की वजह से भी इतनी मौतें नहीं होती हैं, जितनी इस वज्र’पात की वजह से होती हैं. 2018 में देश में वज्रपात से 2357 लोगों की मृ’त्यु हुई. इसमें हमारी भागीदारी दस फीसदी से भी अधिक की थी. इसके बावजूद हम इस मसले को लेकर बहुत गंभीर नहीं हैं.

वीडियो सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं

वज्रपात के मामले में अमूमन यही माना जाता है कि लोगों को अधिक से अधिक सजग रहना चाहिए. इस हादसे के बाद से खेतों में काम करने वाले लोगों के लिए वज्रपात के समय बचाव के तरीकों के बारे में बताने वाले कई वीडियो सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं. बिहार का आपदा प्रबंधन विभाग भी इससे संबंधित जागरूकता वाले विज्ञापन जारी करता रहा. मगर एक मसले पर बहुत कम बात हुई कि अब पुराने हालात नहीं रहे. वज्रपात को लेकर चे’तावनी जारी करने की व्यवस्था भी विकसित हो गई है. 20 किमी के दायरे में संभावित वज्रपात के मामले में अमूमन 30 से 45 मिनट पहले इसकी सूचना जारी की जा सकती है. लोगों को बचाने के लिए हम इन सूचनाओं का कितना इस्तेमाल करते हैं?

बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने इस साल इंद्रवज्र नामक एक मोबाइल एप भी जारी किया है. दावा किया गया है कि यह एप उपयोगकर्ताओं को आधे घंटे पहले सूचित कर देता है कि उनके इलाके में वज्रपात की घटना घटने वाली है. मगर एप बेस्ड चेतावनी का यह सिस्टम कारगर नहीं हो पा रहा. उस एप को गुरुवार तक सिर्फ 10000 लोगों ने डाउनलोड किया था. इस घटना के बाद जब इसका प्रचार-प्रसार हुआ तो डाउनलोड करने वालों की संख्या 50 हजार तक पहुंच गई. मगर कई लोग इस एप की सुविधा से निराश थे.

एप की सेवा बहुत खराब है

बड़ी संख्या में लोगों ने इसे सिंगल रेटिंग दी थी. 26 जून को एक उपभोक्ता ने इसकी समीक्षा करते हुए लिखा था कि इसकी सेवा बहुत खराब है. कई उपभोक्ताओं ने लिखा कि यह रजिस्ट्रेशन के लिए ओटीपी नहीं भेजता है. बड़ी संख्या में लोग इसे डाउनलोड करके भी इस वजह से इसकी सेवा का लाभ नहीं ले पाए. एक उपभोक्ता ने लिखा कि यह 24 घंटे एक्टिव नहीं रहा. इसे बार-बार ओपन करना पड़ता है और ओपन होने में ही यह कई बार आधे घंटे का समय ले लेता है.  दरअसल, इस एप की गुणवत्ता पर कई तरह के सवाल हैं. जिस वजह से तकनीक बेहतर रहने के बावजूद बिहार के लोग इस चेतावनी सुविधा का लाभ नहीं ले पाते हैं. इसके अलावा जिस कंपनी ने इस एप को तैयार किया है, उसे भी बहुत अनुभव नहीं है. उस कंपनी का निबंधन ही पिछले साल का है.

हालांकि सवाल यह भी है कि बिहार में कितने खेतिहर मजदूर और किसान स्मार्ट फोन यूजर हैं और यूजर हैं तो भी बारिश के दिनों में मोबाइल लेकर खेत पर जाते हैं. इस वजह से तकनीकी मामलों के जानकारों का कहना है कि बिहार जैसे राज्य को इस चेतावनी प्रणाली को एप बेस्ड बनाने के बदले एसएमएस बेस्ड बनाना चाहिए था. हर जिले के मौसम विभाग के पास इससे संबंधित चेतावनी आती और वह मैसेज या प्रि-रिकार्डेड फोन कॉल के जरिये अपने क्षेत्र के लोगों को इसकी सूचना दे देता, तो व्यवस्था बहुत कारगर होती. मगर अभी इतनी बड़ी आपदा को लेकर सरकार और व्यवस्था बहुत गंभीर है. ऐसा दिखता नहीं है. 4 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा करके सरकार अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गई है.

खजूर और नारियल के लंबे और ऊंचे पेड़

पर्यावरणविद इस आपदा का एक और समाधान बताते हैं. वह समाधान है खजूर और नारियल के लंबे और ऊंचे पेड़. खेतों में अगर मेढ़ों पर ये पेड़ लगाए जाएं तो ये तड़ित चालक जैसा लाभ देते हैं. बांग्लादेश अपने यहां वज्रपात से बचने के लिए इसी तरकीब को अपना रहा है. हम भी अपना सकते हैं, इससे किसानों को अतिरिक्त लाभ भी होगा. मगर सबसे पहले जरूरी है, हमारा और हमारी सरकारों को इस मसले को लेकर गंभीर होना. यह मानना कि वज्रपात कोई छोटी आपदा नहीं है.

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