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Navaruna murder case : आठ साल, तीन जांच एजेंसियां, दस डेडलाइन और नतीजा सिफर

Navaruna murder case आठ साल से अबूझ पहेली ही बनी हुई है पुलिस, सीबीआइ व आमलोगों के लिए। पिछले छह साल से इस मामले की जांच सीबीआइ कर रही है। दो बार में सीबीआइ ने सात संदिग्ध आरोपितों को गिरफ्तार किया, लेकिन निर्धारित 90 दिनों के अंदर किसी के खिलाफ विशेष कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल नहीं कर सकी। इससे सभी को जमानत मिल गई। पिछले दो साल से सीबीआइ ने किसी संदिग्ध आरोपित को गिरफ्तार नहीं किया है। बस जांच पूरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से डेडलाइन पर डेडलाइन ले रही है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से सीबीआइ को जांच पूरी करने के लिए दसवीं डेडलाइन मिली हुई है। छह साल की जांच में नतीजा कुछ नहीं निकलने का पता तब चलता है जब सीबीआइ अगली डेडलाइन के लिए प्रार्थना पत्र लेकर सीबीआइ सुप्रीम कोर्ट पहुंचती है। फिलहाल यह मामला डेडलाइन के बीच ही झूल रहा है।

अब तक 332 लोगों से हो चुकी पूछताछ

छह साल की अपनी जांच में सीबीआइ ने 332 लोगों से पूछताछ की। 12 लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट, चार का ब्रेन मैपिंग, दो का नार्को व एक का लेयर्ड वायस एनालाइसिस (एलवीए) टेस्ट कराई है। 26 नवंबर 2012 को नवरुणा के घर के सामने नाला से मिली हड्डियों व कपड़े की दोबारा जांच कराने के लिए मध्यप्रदेश के सागर स्थित फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री भेजा गया है। इसकी बायोलॉजिकल व साइंसटीफिक जांच से मिले परिणामों को अपराधियों का पता लगाने को जोड़ा जा सकता है। हालांकि इसकी रिपोर्ट अब तक मिली या नहीं यह पता नहीं चला।

संलिप्तों को सामने नहीं ला सकी सीबीआइ

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी एक अर्जी में सीबीआइ ने कहा था कि नगर थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष व इस मामले की जांच करने वाले जितेंद्र प्रसाद की गुजरात के गांधीनगर स्थित फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री में ब्रेन मैङ्क्षपग कराई गई। इसमें नवरुणा के अपहरण व हत्या में उसकी संलिप्तता के साक्ष्य नहीं मिले हैं, लेकिन इस मामले में वरीय अधिकारियों के कदाचार से संबंधित कुछ जानकारी उसके पास है। इसकी जांच की जा रही है। हालांकि यह जांच कहां तक पहुंची यह भी सीबीआइ नहीं बता सकी है।

नवरुणा के अपहर्ताओं के संरक्षण देने वालों का भी पता नहीं

जांच की अवधि बढ़ाने के लिए सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की थी। इसमें उसने दावा किया था कि अपहरण के लगभग 50 दिनों तक नवरुणा जीवित थी। इस बीच में उसे कहां छुपा कर रखा गया। अपहर्ताओं व उसे छुपाने वाले को संरक्षण देने वाले कौन लोग थे। इसका पता लगाया जा रहा है। हालांकि इस संबंध में सीबीआइ की जांच कहां तक पहुंची यह अब भी रहस्य है।

दस लाख इनाम देने की घोषणा के परिणाम का पता नहीं

इस मामले में सुराग देने वालों के लिए पिछले दिनों सीबीआइ ने दस लाख रुपया इनाम देने की घोषणा की थी। इसको लेकर सार्वजनिक स्थानों पर इश्तेहार चस्पा किया गया था। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में सीबीआइ ने कहा था कि फलदायक परिणाम सामने आ रहे हैं। व्यापक स्तर पर इसके प्रचार-प्रसार ने बड़े पैमाने पर लोगों को आकर्षित किया है। इस संबंध में सूचनाएं आने लगी हैं। इससे जांच को आगे बढ़ाने में सहयोग मिलेगा। इन सूचनाओं का सत्यापन कराया जा रहा है। हालांकि इस क्या सुराग मिला यह पता नहीं चला।

दो साल से किसी की गि’रफ्तारी

इस मामले में सीबीआइ ने सितंबर 2017 में वार्ड पार्षद राकेश कुमार सिन्हा उर्फ पप्पू की पहली गिरफ्तारी की। उसके बाद अप्रैल 2018 में एक साथ छह संदिग्ध आरोपितों की गिरफ्तारी की गई। इसमें जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष शाह आलम शब्बू, विक्रांत कुमार शुक्ला उर्फ विक्कू शुक्ला, अभय गुप्ता, ब्रजेश सिंह, विमल अग्रवाल, व राकेश कुमार शामिल है। दोनों ही बार सीबीआइ ने किसी आरोपित के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं किया। सभी फिलहाल जमानत पर हैं। इसके बाद सीबीआइ की ओर से कोई गि’रफ्तारी नहीं हुई है।

यह है मामला

18 सितंबर 2012 की रात नगर थाना के जवाहरलाल रोड स्थित आवास से सोई अवस्था में नवरुणा का अपहरण कर लिया गया। ढाई माह बाद 26 नवंबर 2012 को उसके घर के निकट नाला से मानव कंकाल बरामद हुआ। डीएनए जांच में यह नवरुणा का करार दिया गया। शुरू में इस मामले की जांच पुलिस ने की बाद में इसकी जांच सीआइडी को सौंपी गई। नतीजा कुछ नहीं निकलने पर सीबीआइ को जांच सौंपी गई। फरवरी 2014 से इस मामले की जांच सीबीआइ कर रही है। 

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