रामनगर श्री प्रेम जननी संस्कृत विद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया है। 1943 में निर्मित यह विद्यालय अपनी गौरव गाथा पर आंसू बहा रहा है। लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं है। शिक्षा विभाग द्वारा अनेक तरह की मॉडल स्कूल का निर्माण किया जा रहा है।जिसमें जनप्रतिनिधियों का सहयोग अपेक्षित है। किंतु वर्षों से यह संस्कृत विद्यालय अपने तारणहार के इंतजार में खड़ा है।
स्कूल के प्रधानाचार्य पीडी तिवारी ने बताया कि स्कूल में कुल 65 बच्चे नामांकित हैं। 31 तारीख को मेरा सेवानिवृत्ति है। इसके बाद कोई पढ़ाने वाला शिक्षक तक नहीं है। कई दफा अधिकारी और जनप्रतिनिधियों से इस बात को लेकर कहा गया। लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि का ध्यान नहीं पहुंच पाया है। कभी यह विद्यालय संस्कृत शिक्षा को लेकर क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ रहता था। अपने अतीत का गौरव गाथा संजोए आजादी से पूर्व सन 1943 ईस्वी में इसकी स्थापना स्व. कमलाकांत त्रिपाठी ने किया था ।

अपने जमाने का समृद्ध संस्कृत विद्यालय ने कई विद्वानों को दिया है। जिनकी ख्याति देश और विदेश में रही है। अब यह गौरवशाली शिक्षा का मंदिर खंडहर का रूप धारण कर चुका है। दीवारें जीर्ण शीर्ण अवस्था में हो जाने के कारण किसी भी बिंदु से नहीं लगता है कि शिक्षा का अलख जगाने वाला यह संस्थान कभी शिक्षा का मंदिर हुआ करती थी। भवन और शिक्षक के अभाव में धीरेे-धीरे विद्यालय के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
विद्यालय में संसाधनों का अभाव
संसाधन के अभाव में शिक्षकों की बैठने की जगह भी नहीं बचा है, और जो बच रहा है। वह खंडहर में तब्दील हो चुका है। सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त इस संस्कृत विद्यालय की हालत इतनी दयनीय हो गई है कि स्कूल का कागजात भी रखने का जगह प्रायः समाप्त हो चुका है। शिक्षा विभाग के द्वारा शिक्षा को लेकर तमाम घोषणाएं किया जा रहा है। परंतु इस विद्यालय को देखकर यही लगता है कि सरकार केवल कागजों पर ही नियम बनाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो इस विद्यालय को मॉडल रूप देकर पुरानी शिक्षा को अलख जगाया जाता।
बिहार में संस्कृत की हो रही अनदेखी
पीडी तिवारी ने कहा कि बिहार राज्य में संस्कृत के लिए सरकार की शिक्षा नीति में कोई जगह नही है। कहा जाता है विश्व की एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत है जिसकी व्याकरण और स्वर ध्वनि का अपना विशेष स्थान है। यह विश्व की एकमात्र भाषा है जिसके शब्दो का उच्चारण और लिखावट दोनो में कोई अंतर नही होता है। अंतरिक्ष मे कही और सुनी जाने वाली सबसे उपयुक्त भाषा सिर्फ और सिर्फ संस्कृत ही है। जिसके शब्द वायुमंडल में टकरा कर विलीन नही होते है। यही वैज्ञानिकता है कि आज संस्कृत की पढ़ाई अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में हो रही है। इसमे रिसर्च भी हो रहे है लेकिन हम अपनी ही पहचान मिटाने में जूट हुए है।
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