पटना के बिहार म्युजियम में आर्ट एग्जिबिशन लगाया गया है। इसमें आर्टिस्ट संजय कुमार की दो पेंटिग्स चर्चा का केंद्र बनी हुई है। ये अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से समाज को साकारत्मक्ता और अपराध मुक्त करने का संदेश दे रहे हैं। उनकी इस कृति में एक सबसे अनोखा है उनका भिक्षाम देही पात्र।/
इस कृति में उन्होंने भगवान बुद्ध के भिक्षा पात्र में बहुत सारी बंदूकें दिख रही है। इसके अलावा भी उनके इस एग्जीबिशन में कई पेंटिंग हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। इन पेंटिंग के पीछे छिपी कहानियां संजय कुमार की यात्रा को बताता है।

देश में धार्मिकता पर छिड़ी बहस का जवाब अपनी कृति से दे रहे
अपनी इस अनोखी कृति के बारे में वो कहते हैं कि इसकी रचना उन्होंने 2008 में मुंबई हमले के बाद किया था। कहते हैं आतंकियों के हमले के दौरान उनके एक शो की तैयारी ताज होटल के ताउ आर्ट गैलरी में चल रही थी। इस हमले में आर्ट गैलरी के मालिक की मौत हो गई। इस हमले का उनके दिमाग में इतना गहरा असर पड़ा कि उन्होंने भिक्षाम देही के कॉन्सेप्ट पर इसे तैयार किया। इस आर्ट के माध्यम से वे लोगों को संदेश दे रहे हैं कि लोग अपने अंदर के डर और बुराई को इसमें त्याग दें। इसी का संदेश वे शहर-दर शहर हर एग्जिबिशन में देते चल रहे हैं।

म्यूजियम में लगे एग्जीबिशन में एक रखी एक प्रतिमा भी लोगों को आकर्षित कर रही है। इस मूर्ति के शरीर में सभी धर्मों को दर्शाया गया है। लेकिन चेहरे पर आईना लगा है। इसके बारे में बताते हुए संजय कहते हैं कि अपनी इस कृति के माध्यम से वो बताना चाहते हैं कि हर इंसान का एक ही धर्म है। मानवता। आप हिंदू, मुस्लिम ,सिख या ईषाई चाहे जिस धर्म को मानते हों। आपका बस एक ही धर्म है मानवता का धर्म। इसलिए हम लोगों को जाति–धर्म से हट कर मनुष्य बनना चाहिए।

अपनी ही बेची हुई पेंटिंग को 200 गुणा दाम में खरीदा
संजय कहते हैं कि एक करियर के शुरुआती दिनों में अपनी एक पेंटिंग्स मामूली कीमत में बीच दी थी।कुछ साल बाद उन्हें दोबारा दिखी। अपनी उसी पेंटिग्स को दोबारा हासिल करने के लिए उन्हें 200 गुणा अधिक कीमत चुकानी पड़ी। वो कहते हैं कि ये पेंटिंग्स उनके जीवन में इसलिए भी खास है कि उन्होंने इसके माध्यम से अपने करियर की शुरुआत की थी। ये उनके संघर्ष के दिनों का साथी है। इसे वो हमेशा अपने पास सहेज कर रखना चाहते हैं।

जानिए कौन हैं संजय, साहिबगंज निकलकर मुंबई में बनाया में बनाया अपना मुकाम
1964 में संयुक्त बिहार के साहिबगंज जिल में जन्मे, संजय कुमार ने 1988 में पटना यूनिवर्सिटी के कला और शिल्प कॉलेज, से चित्रकला की पढ़ाई की। इसके बाद इन्होंने दिल्ली का रुख किया। यहां ललित कला एकेडमी में इन्होंने एक साल की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने सपनों को पंख देने इन्होंने मुंबई का रुख किया। कहते हैं अपने घर और रिश्तेदारों से दूर उस शहर में उनके जीवन का ये सबसे संघर्ष वाले दिन थे। न पॉकेट में पैसे थे न कहीं से पैसे की कोई उम्मीद।
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