स्वास्थ्य विभाग ने सदर अस्पतालों को आधुनिक उपकरण से सुसज्जित कर दिया।मगर उन उपकरणों के इस्तेमाल की दिशा में ना तो डाक्टर और ना ही टेक्नीशियन के प्रतिनियुक्ति किया।लिहाजा डाक्टर और टेक्नीशियन की कमी के वजह सदर अस्पताल में आधुनिक उपकरण धूल फांक रहा है।जिस वजह से सुविधा होने के बावजूद इलाके के मरीजो को शहर के निजी नर्सिंग होम में इलाज के नाम पर मोटी रकम चुकानी पड़ती है। इसी कड़ी सुपौल जिला मुख्यालय का सदर अस्पताल में मौजूद 6 वेंटिलेटर है। जो चालू नहीं होने की स्थिति में फिलहाल कोई काम का नहीं है।n
वहीं जिले के विभिन्न इलाकों के निजी नर्सिंग होम में गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर पर रखने के नाम पर आठ हजार से पंद्रह हजार रूपए प्रतिदिन के हिसाब से वसूला जा रहा है। वही सुपौल सदर अस्पताल में सुविधा उपलब्ध हो जाने से जिले वासियों को उम्मीद जगी थी की अब सरकारी सदर अस्पताल मे बेहतर मरीजों को सुविधाएं मिलेगी। मगर उपकरण के चालू नहीं होने से निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर मरीजों को अनाप सनाप रूपये वेवजह चुकानी पड़ रही है।

इधर स्वास्थ्य विभाग के अनदेखी के वजह अब तक सदर अस्पताल में प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति नहीं हो सकी है। जानकारी दे की कोविड 19 के दूसरे लहर में वर्ष 2020 के जुलाई महीने मे भारत सरकार के ओर से सुपौल सदर अस्पताल को 6 वेंटिलेटर मशीन उपलब्ध करवाया गया।मगर विभागीय लापरवाही के कारण ढाई साल बीतने के बाबजूद भी प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति नहीं हो सकी है।ऐसा नहीं है कि यहां के अधिकारियों ने इस ओर प्रयास नहीं किया कर्मियों की नियुक्ति को लेकर कई बार अधिकारियों ने स्वास्थ्य विभाग को पत्र भेजा। मगर कार्रवाई सिफर रही।
कोविड 19 के कहर ने स्वास्थ्य व्यवस्था की पोलपट्टी खोल कर रख दीं थी। तो प्रधानमंत्री केयर्स फंड के माध्यम से सुपौल सदर अस्पताल को छः वेंटिलेटर उपलब्ध करवाया गया था। कोविड 19 के दूसरी लहर जब अपने चरम पर थी। तब उक्त वेंटिलेटर को चालू करने की दिशा में जमकर हाय-तौबा मची, बावजूद इसके उन तमाम छः वेंटिलेटर का इस्तेमाल कोविड 19 के मरीजों के लिए नहीं हो सका था। इतना ही नहीं तीसरी और चौथी लहर भी आकर चली गई।लेकिन वेंटिलेटर यूं ही पड़े हुए हैं। फिलहाल जो विभागीय रवैया है।उसे देख ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शायद ही छः वेंटिलेटर चालू हो पाएगा।
सुपौल सदर अस्पताल में धूल फांक रहे छः वेंटिलेटर को लेकर बिहार के तत्कालीन पर्यावरण एवं जलवायु मंत्री ने तब ली थी जब कोविड 19 की दूसरी लहर से हाहाकार मचा हुआ था। उन्होंने वेंटिलेटर को चालू करने के बाबत सुपौल के सिविल सर्जन से बात की। सिविल सर्जन ने जानकारी देते हुए मंत्री को बताया था कि वेंटिलेटर को चलाने वाले टेक्नीशियन नहीं हैं।और न ही डॉक्टर व अन्य कर्मी हैं।

जिला अधिकारी कौशल कुमार।
उस व्यक्त सूबे के तत्कालीन वन पर्यावरण एवं जलवायु मंत्री ने इस बाबत बीजेपी के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से बात की थी। एक समय ऐसा लगा कि अब जल्द ही छः वेंटिलेटर काम करना शुरु कर देगा।लेकिन वेंटिलेटर के चालू होने की बात ढ़ाक के तीन बात होकर रह गई। वेंटिलेटर को चलाने के लिए टेक्नीशियन व चिकित्सक की बहाली निकाली गई। लेकिन पद के अनुरूप आवेदन ही नहीं आए। बाद में टेक्नीशियन की तो व्यवस्था कर ली गई। लेकिन जिस चिकित्सक का पदस्थापन यहां किया गया उन्होंने योगदान नहीं किया।यंहा जानकारी दे की सुपौल सदर अस्पताल मे आईसीयू बनाने को को लेकर वर्ष 2015 मे स्वास्थ्य विभाग ने 2 वेंटीलेटर भेजा गया था।
मगर डॉक्टर और टेक्नीशियन की कमी की वजह से 2 वेंटीलेटर को वर्ष 2019 मे रख रखाव को लेकर सदर अस्पताल के अधिकारियो ने उस वेंटीलेटर को दरभंगा डीएमसीएच अस्पताल में भेज दिया गया।जिस के बाद किसी ने भी आइसीयू बनाने की कार्रवाई को आगे बढ़ाने की जहमत नही उठाया। इस बाबत सुपौल सिविल सर्जन डॉक्टर मिहिर कुमार वर्मा से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा वेंटिलेटर को सुचारु रुप से चालू करने के लिए एनेस्थेटिक एवं प्रशिक्षित डॉक्टरों की आवश्यकता है,डॉक्टरों के अभाव में अब तक वेंटिलेटर चालू नहीं हो सका है। जबकि सुपौल जिला अधिकारी कौशल कुमार ने सरकार को पत्र भेजे जाने को लेकर जानकारी दी और कहा विभागीय स्तर से जल्द ही रिक्त पदों पर बहाली कर सुचारू रूप से बहाल कर दिया जाएगे।


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