बगहा अनुमंडल में एक गांव ऐसा भी है, जहां लोग अपने-अपने घर को पूरी तरह से 1 दिन के लिए खाली कर देते हैं। ग्रामीण हर साल बैसाख की नवमी तिथि को ऐसा करते है। लोग जितने बजे दिन में गांव छोड़ते हैं उस समय से ठीक 12 घंटे बाद जंगल से वापस आते हैं। गांव नवमी तिथि को एक निर्धारित समय पर छोड़ा जाता है। यहां मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से देवी प्रकोप से निजात मिलती है। थारू समुदाय बाहुल्य इस गांव के लोगों में आज भी अनोखी प्रथा जीवंत है। इस प्रथा के चलते नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी गांव से बाहर ले कर चले जाते हैं। लोग जंगल में जाकर वहीं, 12 घंटे बिताते हैं। आधुनिकता के इस दौर में इस गांव के लोग अंधविश्वास की दुनिया में जी रहे हैं। यह गांव थारू बाहुल्य गांव नौरंगिया है।
देवी के प्रकोप से बचने के लिए शुरू हुई थी प्रथा
गांव के लोगों के मुताबिक इस प्रथा के पीछे की वजह देवी प्रकोप से निजात पाना है। वर्षों पहले इस गांव में महामारी आई थी। गांव में अक्सर आग लगती थी। चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप रहता था। हर साल प्राकृतिक आपदा से गांव में तबाही का मंजर नजर आता था। इससे निजात पाने के लिए यहां एक संत ने साधना कर ऐसा करने का फरमान सुनाया था।
12 घंटे के लिए होता है बनवास
ऐसा माना जाता है कि प्रतिवर्ष यहां के लोगों का 12 घंटे के लिए बनवास होता है। नवमी के दिन लोग घर खाली कर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं। यहां मां दुर्गा की पूजा करते हैं। इसके बाद 12 घंटे गुजरने के बाद वापस घर आते हैं। हैरानी की बात तो ये है कि आज भी इस मान्यता को लोग उत्सव की तरह मना रहे हैं। इस पूरे मामले के बारे में ग्रामीण ने बताया कि इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाते, पूरा घर खुला रहता है और चोरी भी नहीं होती।



लोकल मार्केट के साथ ऑनलाइन भी बढ़ी मांगतीन युवा रबर बैंड और ब्रासलेट के साथ साथ ग्रामीण स्तर पर तैयार किए गए मिट्टी के दीप, दउरी एवं चिपड़ी आदि सामानों की ऑनलाइन मार्केटिंग भी कर रहे हैं। जिसकी ऑनलाइन मार्केट में अच्छी मांग हो रही है। तीनों युवा गांव में कुम्हार की दयनीय हालत को देख कर उनको मार्केटिंग दिये है। उनके द्वारा उत्पादित मिट्टी के दीये व आकर्षक बर्तनों को ऑनलाइन प्लेटफार्म देकर विक्री तेज कर दी है।


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