समस्तीपुर जिले के कल्याणपुर प्रखंड क्षेत्र के नामापुर गांव के लोग को हर वर्ष मौत की नदियों का सामना करना पड़ता है। बता दें कि जिस नदी को आज लोग मौत की नदी कहते हैं, उस नदी को लोग पहले शांति नदी के नाम से जानते थे। लेकिन बाढ़ के समय में हर वर्ष शांति नदी पर बने पुल के समीप करीब 5 से 6 लोगों की मौत हो जाती है। जिसके कारण यहां के लोग इस नदी को मौत की नदी कहते हैं। बाढ़ के समय में तटबंध से गांव का संपर्क छूट जाता है। गांव से तटबंध तक जाने के लिए लोग नाव का सहारा लेते परंतु प्रशासनिक स्तर इस ओर ध्यान नहीं दी जाती है। जिसके कारण यहां के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रता है।
नदी पर बना पुल।
लोगों का कहना है कि पिछले 10 वर्षों में इस मौत की नदी पर अब तक 30 से 40 लोगों की मौत हो चुकी है जो नामापुर गांव के लोगों के लिए एक मुसीबत सी बन गई हैं। लोग कहते है कि अगर तटबंध से गांव तक 5 से 7 फीट ऊंची मिटटीकरण कर के सड़क निर्माण करा दी जाए तो इस गांव के लोगों को इस मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ेगा। बाढ़ के समय में प्रशासन के द्वारा नाविक पर प्रति वर्ष करीब 2 करोड़ रुपए खर्च होती है। परंतु वही रुपए को खर्च कर यहां पर मिटटी करण करा दी जाए और सड़क की निर्माण करा दी जाए तो यहां के लोगों को इस मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। परंतु इस पर ना तो जनप्रतिनिधि ध्यान देते हैं और ना होगा अधिकारी। जिसके कारण लोग हमेशा सहमें रहते है।
लोग इस समस्या को लेकर स्थानीय सांसद प्रिंस राज पासवान एवं स्थानीय विधायक सह विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी से शिकायत भी की, परंतु उनके द्वारा भी सिर्फ आश्वासन मिला। जिसके कारण यहां के लोग हमेशा सहमे रहते हैं, और तभी से यहां के लोग इस शांति नदी को मौत की नदी कहते हैं।
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