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शुभ दीपावली: शहर में दीवाली बाज़ार पर लगभग 75 % चाइनीज सामानों का क’ब्जा, देखें…

हमारे यहां पुरानी कहावत है-सस्ता रोये बार-बार, महंगा रोये एक बार। पहले लोग इस पर अमल करते थे और ऐसा सामान खरीदते थे जो काफी टिकाऊ हो, भले ही दाम जो लगे। इसके उलट आज की स्थिति यह है कि लोग सस्ता और डिजाइनदार चीजों को तवज्जो देने लगे हैं। हमारी इसी बदलती मानसिकता का फायदा चाइनीज सामान बेचने वालों ने उठाया है। वे घटिया तकनीक के सामानों को आकर्षक बनाकर हमारी जेब पर डाका डाल रहे हैं। हमारे यहां की लक्ष्मी परदेश जा रही है और हम अपने देश के टिकाऊ सामान इसलिए नहीं खरीदते हैं कि ये उतने तड़क-भड़क वाले नहीं होते। इनकी कीमत भी अपेक्षाकृत अधिक होती है।

इस बात को समझना है तो अभी दीपावली के बाजार में हुई चाइनीज सामानों की बिक्री पर एक नजर डाल लें। इसी की पड़ताल करती एक रिपपोर्ट…चांदनी मार्केट के बाहर फुटपाथ पर चाइनीज झालर बेच रहे शहजाद कहते हैं- झालरों का पूरा बाजार चीन के माल से भरा पड़ा है। जो झालर चीन की 40 रुपए में आ रही है, वही कोई देसी लेंगे तो कम से कम 80 रुपए में पड़ेगी। दाम दोगुना होने के कारण ही इनकी उतनी बिक्री नहीं हुई है। ज्यादा अच्छा है, ज्यादा चलेगा, इसपर कम ही ग्राहकों ने ध्यान दिया।चीन का माल पूरा बिक जाता है। देसी सामान फंस जाता है। शहजाद ने इतनी बातें बहिचक कह डालीं। बात सिर्फ झालर तक ही सीमित नहीं रहती, इससे काफी आगे चली जाती है।

लाइटें, सजावट के सामान, पूजा की थाली, कंडील, मोमबत्तियां, पटाखों के साथ-साथ लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्तियां भी चीन से बनकर आ रही हैं। पटना का बाजार भी इन्हीं से सजा रहा। चूंकि ये देसी के मुकाबले सस्ती और आकर्षक होती हैं। इसलिए इनकी बिक्री भी ज्यादा है। इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। यहां के व्यापार से होने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा चीन के खाते में जा रहा है।सोने से कम नहीं, खो जाए तो गम नहीं की तर्ज पर लोग चीन के उत्पादों को स्वीकार कर रहे हैं। पहले घर-घर में हाथों से कंदील बनाए जाते थे। अब यही चीन से बनकर आ रहे हैं। चीन ने तो सबसे सस्ता बिकने वाले दीये को भी मात दे दी। दिवाली जैसे त्योहार में सबसे कम कीमत दीयों की ही होती है, लेकिन आज दीये बनाने वाले भी चाइना के बाजार से प्रभावित हैं। ग्राहक अपनी जेब के हिसाब से खरीदारी करता है। जहां सस्ता मिलेगा वह वहीं से खरीदेगा, फिर चाहे वह ‘चीन हो या कोई और।

निजी कंपनी में कूरियर ब्वॉय का काम करने वाले सुधांशु कहते हैं- ज्यादा पैसे देकर टिकाऊ सामान खरीदने का जमाना गया। अब तो अच्छा दिखना चाहिए और सस्ता होना चाहिए। एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसकी आर्थिक स्थिति सामान्य है। इसलिए वह ज्यादा खर्च करने की हैसियत में भी नहीं रहता। सामने सस्ते में जो मिलता है, उसे खरीद लेता है. एलईडी लगी झालर 40 से 400 रुपए तक बिकी। दीये व मोमबत्ती 100 से 150 के बीच बिके। बाजार में चीनी फैंसी लाइट 70 से 450 रुपए के बीच बिकी। एलईडी पाइप झालर 50 मीटर का बंडल तीन से पांच हजार रुपए के बीच बेची जा रही थी। इस एलईडी पाइप झालर की खास बात यह है कि बरसात और धूप का इस पर असर नहीं होता। दूसरी ओर, एलईडी पाइप झालर लाइट को मीटर के हिसाब से भी दुकानदार बेच रहे थे। यह 70 से 90 रुपए मीटर का भाव पड़ रहा है। चीनी लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति भी बाजार में उपलब्ध थीं। चीनी लक्ष्मी गणेश की मूर्ति में एलईडी बल्ब लगाकर इसे और आकर्षक बनाया गया है। इसकी कीमत 120 से 450 रुपए तक थी।

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