अपनी राजनीति के उफान के समय राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कभी मजाक में ही कहा था कि जब तक समोसे में आलू रहेगा, तब तक बिहार में लालू रहेगा। तब यह नारा बिहार के बाहर भी सुना गया था। आज उस दौ’र को गुजरे जमाना हो गया, लेकिन नारे का संदेश कहीं न कहीं आज भी जिंदा है।अभी लगभग दो साल से जे’ल में रहने के बावजूद लालू प्रदेश के सियासी पटल से आज भी ओझल नहीं हुए हैं। राजनीतिक गलियारे में किसी न किसी रूप में न सिर्फ आज भी उनकी चर्चा है, बल्कि पिछले लोकसभा चुनाव में तो उन्होंने जे’ल में रहकर ही विपक्ष की मो’र्चाबं’दी का पूरा ताना-बाना भी बुना। हां, इतना जरूर है कि मोदी-नीतीश के जलवे के सामने विप’क्ष की मोर्चाबं’दी ध’राशायी हो गई, लेकिन लालू ने अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखी है। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर लालू प्रसाद का 11 वां कार्यकाल इस महीने की 10 तारीख से शुरू होगा। अध्यक्ष पद के लिए मंगलवार को उनका नामांकन हुआ। मु’काबले में कोई नहीं है। उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और दूसरे कई नेता इसे परिवारवाद की पराकाष्ठा मानते हैं।
इस पर पार्टी के विधायक शिवचंद्र राम कहते हैं कि लालू प्रसाद ताउम्र हमारे अध्यक्ष रहेंगे। परिवारवाद के नाम पर लालू प्रसाद की आ’लोचना होती है। हालांकि वह क्षेत्रीय दलों के अकेले नेता नहीं हैं, जिन्होंने पार्टी बनाई और परिवार से बाहर के किसी को शीर्षस्थ पद पर नहीं बैठने दिया।इतना जरूर है कि वह इस लिहाज से अकेले हैं कि लगातार करीब 30 साल तक बिहार की राजनीति उनके पक्ष या विपक्ष में ही घूमती रही। वर्तमान की साझी सरकार में संक्षिप्त भागीदारी को छोड़ दें तो बिहार की सत्ता से करीब 12 वर्षों तक अलग रहने के बावजूद लालू के बिना बिहार की राजनीतिक चर्चा आगे नहीं बढ़ पाती है।करीब तीन दशकों से राज्य के हर चुनाव में लालू की मौजूदगी बनी हुई है।
अभी छह माह पूर्व लोकसभा चुनाव के समय वह जेल में थे। बा’वजूद इसके उन्होंने विपक्ष की दशा-दिशा तय करने, ट्विटर आदि के जरिये संदेश देने में पूरी सक्रियता दिखाई।सबसे बड़ी बात है कि सत्तारूढ़ राजग के लिए भी लालू अभी तक पूरी तरह प्रासंगिक बने हुए हैं। चाहे प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री या फिर राजग का कोई अन्य नेता, अपनी चुनावी सभाओं में सबने किसी न किसी रूप में लालू या उनके शासनकाल का उल्लेख जरूर किया।
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