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लीची उत्पादन में चीन के ग्वानडांग को पीछे छोड़ेगा मुजफ्फरपुर, सुधार की पहल में जुटा लीची अनुसंधान केंद्र

लीची उत्पादन में मुजफ्फरपुर  चीन के सर्वाधिक लीची उत्पादक प्रांत ग्वानडांग को पीछे छोडऩे की राह पर है।  ग्वानडांग प्रांत में संपूर्ण लीची उत्पादन के 40 प्रतिशत से अधिक की उपज होती है। अब लीची अनुसंधान केंद्र व्यवस्था सुधार की पहल में जुट गया है। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर ने सूबे के  37 जिलों को लीची उत्पादन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त  पाया है। संबंधित जिलों के 50 लाख पांच हजार 441 हेक्टेयर क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त हैं। वहीं सर्वे के अनुसार मुजफ्फरपुर जिले के एक लाख 53 हजार  हेक्टेयर क्षेत्र को सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया है। जबकि वर्तमान में मुजफ्फरपुर के केवल 12 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। अनुसंधान केंद्र क्षेत्र विस्तार की पहल करेगा। 

जलोढ़ मिट्टी लीची की फसल के लिए उपयुक्त 

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने बताया कि जलोढ़ मिट्टी लीची की फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यही वजह है कि  चीन व भारत  में नदियों के आसपास के  लीची की बागवानी ज्यादा होती है। बिहार में गंगा,  गंडक, बूढ़ी गंडक के किनारे तो यूपी में भी गंगा व शारदा नदियों के किनारे का क्षेत्र लीची की पैदावार के लिए सबसे अनुकूल है।

 निदेशक ने कहा कि विश्व के सर्वाधिक लीची उत्पादक देश चीन के आठ लाख हेक्टेयर में 31 लाख टन लीची का तो भारत के एक लाख हेक्टेयर में 7.5 लाख टन लीची का उत्पादन होता है। बिहार के  उपयुक्त क्षेत्र 50 लाख हेक्टेयर के दस प्रतिशत 5.1 लाख हेक्टेयर में लीची के बाग लगवा दिए जाएं तो चीन से दोगुना उत्पादन शुरू हो जाएगा। इसके लिए हर स्तर पर पहल चल रही है। लोगों को जागरूक किया जा रहा है। 

लीची की प्रमुख किस्में 

भारत : शाही, चायना, देहरा रोज, रोज सेंटेड, बम्बई, पूर्वी, कलकतिया, कस्बा, लौंगिया, देहरादून, बेदाना, गण्डकी, लालिमा, गंडकी संपदा, गंडकी योगिता, कसैलिया। 

चीन : सैनह्यूहांग, बैतियांगइंन, दाजाओं, हेई, बाइला, फेइजियाओ, सुई डोंगाई, झियांगली, गाइवाई, नुमाइची, हूजी, जेहूजी, लैंग्झू, यांगहांग, जियाफांझी, ननमुई।

इस बारे में लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने कहा क‍ि ‘लीची उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हर स्तर पर पहल चल रही है। किसान भी आगे आ रहे हैं। अनुसंधान केंद्र की ओर से देश स्तर पर बगानों को बढ़ाने के लिए अभियान लगातार जारी है।

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