समस्तीपुर युवा किसान रामकिशोर सिंह ने तरबूज की खेती से न केवल अपने परिवार की तकदीर बदल दी, बल्कि गांव के लगभग 15 लोगों को अपने खेत में रोजगार देकर उनके भी दिन फेर दिए। मैट्रिक की परीक्षा में क्राॅस लगने के बाद खेती में भाग्य आजमाने वाले के उजियारपुर प्रखंड स्थित बेलारी के 42 साल रामकिशोर करीब 20 सालों से दूसरे की जमीन को ठेके पर लेकर खेती करते आ रहे हैं। उनको सामान्य दिनों में प्रति एकड़ एक से सवा लाख रुपए सालाना की आमदनी हो रही है।
अपने पिता की ही तरह उन्होंने कुछ दिन तक पारंपरिक खेती की थी। लेकिन इससे होने वाली आमदनी से भरण पोषण मुहाल था। फिर रामकिशोर ने करीब 4 बीघा जमीन लीज पर लेकर लीक से अलग हट कर सब्जियों की खेती करनी शुरू की। वह तरबूज के अलावा परवल, बैगन, टमाटर, गाजर व हरी मिर्च की भी खेती करने लगे।
खेतों में उपज रहे तरबूज के साथ पुलकित किसान
इसके बाद उनकी तकदीर ने साथ दिया और उनकी किसानी चमक उठी। उनके जमीन में अब रोज 12-15 मजदूर लगे रहे हैं। सालाना वह खर्चा काट कर दो लाख से तीन लाख बचा भी रहे हैं। बचत की गई राशि से उन्हें मकान भी बनाया है। कुछ अपने नाम की जमीन भी खरीदी।

खेतों में उपजा तरबूज
मैदानी इलाके में तरबूज की खेती था नया प्रयोग
युवा किसान रामकिशोर सिंह बताते हैं कि तरबूज आम तौर पर नदी के ढाव वाले क्षेत्र में होता है। उन्होंने सोचा यह आम भूमि में क्यों नहीं हो सकता। इसके बाद इन्होंने तरबूज का बीज मंगाया। मिट्टी के जांच कार्यों से जुड़े अशोक कुमार सिंह से मिट्टी की जांच कराकर जरूरत के हिसाब से मिट्टी में जैविक खाद, वर्मी और गोबर का प्रयोग किया। बिलंब से तरबूज लगाए जाने के बाद भी फसल अच्छी हुई। रामकिशोर बताते हैं कि बाजार में बिक रहे तरबूज और इनके खेत में उपजे तरबूज के मिठास में काफी अंतर है। इस मिट्टी के तरबूज में मिठास काफी अच्छी है।
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